सब के मन में एक विचार गुरुदेव नवरत्न सागर सुरिश्वर जी म.सा. का अंतिम संस्कार भोपावर में ही क्यों किया गया…….

सब के मन में एक विचार गुरुदेव नवरत्न सागर सुरिश्वर जी म.सा. का अंतिम संस्कार भोपावर में ही क्यों किया गया…….

सब के मन में एक विचार गुरुदेव नवरत्न सागर सुरिश्वर जी म.सा. का अंतिम संस्कार भोपावर में ही क्यों किया गया…….

सब के मन में एक विचार गुरुदेव नवरत्न सागर सुरिश्वर जी म.सा. का अंतिम संस्कार भोपावर में ही क्यों किया गया…….

गुरुदेव नवरत्न सागर सुरिश्वर जी म.सा. का

सब के मन में एक विचार गुरुदेव नवरत्न सागर सुरिश्वर जी म.सा. का अंतिम संस्कार भोपावर में ही क्यों किया गया…….
समाधान;– भोपावर शांतिनाथ भगवान का प्रमुख तीर्थ स्थल हे इस तीर्थ का निर्माण 87000 वर्ष पूर्व कृष्ण महाराजा के साले रुक्मी कुमार द्वारा किया गया था…रुक्मिणी हरण के बाद रुक्मी कुमार ने प्रण लिया था की अगर रुक्मिणी को वापिस ना ला सका तो अपने राज्य अमझेरा कभी नि आऊंगा…तब रुक्मी कुमार ने परमात्मा की नयनाभिराम 14 फीट ऊँची प्रतिमाजी का निर्माण कर जिनालय बनाया…गुरुदेव का बचपन से भोपावर से विशेष लगाव रहा…और दादा की गुरुदेव पर असीम कृपा भी थी..गुरुदेव ने जीर्ण-शीर्ण हो चुके मंदिर को देखकर एक विशाल शिखरबंद जिनालय में परमात्मा को विराजित करने की कल्पना की..गुरुदेव को अधिष्ठायक देवी-देवताओ से संकेत प्राप्त हो जाते थे कोई भी बड़ा काम करते तो..इतनी प्राचीन प्रतिमा को सफलतापूर्वक निकलना एक यक्ष प्रश्न की तरह मुश्किल था पर गुरुदेव् पुरे विश्वास के साथ पहले विशाल जिनालय को मूर्त रूप दिया और एक चमत्कारिक घटना घटी और एक रात्रि को परमात्मा का मंत्रोचार के द्वारा उथापन किया..गुरुदेव के पुण्य प्रताप से प्रतिमाजी का भार हल्का हो गया और आसानी से कुछ लोगो ने ही क्रेन पर रख दिया प्रतिमाजी को और फिर नूतन मंदिर में सफलतापूर्वक स्थापन भी हो गया…सुबह जब इस चमत्कारिक घटना का पता लगा तो सम्पूर्ण भारत्त का जैन समुदाय के विस्मय और हर्ष का पार नि रहा..गुरुदेव के कई चमत्कारों का साक्षी रहा हे मालवा प्रान्त…गुरुदेव के गुणों का वर्णन करना सूर्य को दीपक दिखाने जेसा हे..मुझमे इतना ज्ञान नहीं की उसका सही2 आकलन कर सकू…
कोटि2 वंदना जिनशासन के एसे महान संत को..भोपावर में गुरुदेव का एक सुन्दर गुरु मंदिर का भी निर्माण होगा…..courtesy..:-जैनम् जयति शासनम्…
जन-जन की आस्था अवं श्रद्धा के केंद्र स्वर्गस्थ आचार्य भगवंत नवरत्न सागर सुरिश्वर जी महाराजा का देवलोकगमन एक अपूरणीय क्षति हे जो शायद हे कभी पूरी होगी…74 वर्ष की आयु में वर्धमान तप की 193 वि ओली की तपस्या और उसमे भी खराब स्वास्थ्य होते भी गुरुदेव का जिद करके डोली में ना बेठना…कितने अजोड साधक थे…गुरुदेव ने 170 जैन तीर्थो का निर्माण अवं जिर्नोध्वार करवाया और 200 के लगभग साधू-साध्वी भगवन्तो को दीक्षा दी…10-11 वर्षो से गुरु देव एकम को महामांगलिक देते थे जनकल्याण के लिए…कितनी भी मोसम विपरीत होता पर गुरुदेव की मांगलिक निर्विघ्न संपन्न होती ये गुरुदेव का ही चमत्कार था..
कल राजगड(धार)से गुरुदेव की अंतिम यात्रा भोपावर महातीर्थ पूज्यश्री का अंतिम संस्कार….

 

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