संसारम्मि असारे ,
नत्थि सुहं वाहि – वेअणा – पउरे ।
जाणंतो इह जीवो ,
न कुणइ जिणदेसियं धम्मं ॥१ ॥
अथॅ –
व्याधि – वेदना से प्रचुर इस असार संसार में लेश भी सुख नहीं है….. यह जानते हुए भी जीवात्मा जिनेश्वर भगवन्त द्वारा निर्दिष्ट धर्म का आचरण नहीं करता है ।।1।।