4. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

4. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

4. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

ही संसार – सहावं ,

चरियं नेहाणुरागरत्ता वि ।

जे पुव्वण्हे दिट्ठा ,

ते अवरण्हे न दीसंति ॥४ ॥

: अर्थ :

अहो ! संसार का स्वभाव कैसा है ? जो पूर्वाह में स्नेह के अनुराग से रक्त दिखाई देते हैं . वे अपराह्न में वैसे दिखाई नहीं देते हैं ।।4 ।।

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