Categories : Jain Stotra, JAINISM 4. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक ही संसार – सहावं , चरियं नेहाणुरागरत्ता वि । जे पुव्वण्हे दिट्ठा , ते अवरण्हे न दीसंति ॥४ ॥ : अर्थ : अहो ! संसार का स्वभाव कैसा है ? जो पूर्वाह में स्नेह के अनुराग से रक्त दिखाई देते हैं . वे अपराह्न में वैसे दिखाई नहीं देते हैं ।।4 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक