5. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

5. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

5. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

मा सुअह जग्गियव्वे ,

पलाइयव्वंमि कीस वीसमेह ? |

तिणि जणा अणुलग्गा ,

रोगो अ जरा अ मच्चू अ ॥५ ॥

: अर्थ :

जाग्रत रहने योग्य धर्म – कर्म के विषय में सोओ मत । नष्ट होने वाले इस संसार में किसका विश्वास करोगे ? रोग , जरा और मृत्यु ये तीन तो तुम्हारे पीछे ही लगे हुए हैं ।।5 ।।

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