Categories : Jain Stotra, JAINISM 5. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक मा सुअह जग्गियव्वे , पलाइयव्वंमि कीस वीसमेह ? | तिणि जणा अणुलग्गा , रोगो अ जरा अ मच्चू अ ॥५ ॥ : अर्थ : जाग्रत रहने योग्य धर्म – कर्म के विषय में सोओ मत । नष्ट होने वाले इस संसार में किसका विश्वास करोगे ? रोग , जरा और मृत्यु ये तीन तो तुम्हारे पीछे ही लगे हुए हैं ।।5 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक