7. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

7. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

7. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

सा नत्थि कला तं नत्थि ,

ओसहं तं नत्थि किं पि विन्नाणं ।

जेण घरिज्जइ काया ,

खज्जंती कालसप्पेण ॥७ ॥

: अर्थ :

ऐसी कोई कला नहीं है , ऐसी कोई औषधि नहीं है , ऐसा कोई विज्ञान नहीं है , जिसके द्वारा काल रुपी सर्प के द्वारा खाई जाती हुई इस काया को बचाया जा सके ।।7 ।।

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