Categories : Jain Stotra, JAINISM 73. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक संबुज्झह किं न बुज्झह ? संबोहि खलु पेच्च दुल्लहा । नो हु उवणमंति राइओ , नो सुलहं पुणरवि जीवियं ॥७३ ॥ : अर्थ : तुम बोध पाओ ! तुम्हें बोध क्यों नहीं होता है ? वास्तव में परलोक में बोधि की प्राप्ति होना दुर्लभ है । जिस प्रकार बीते हुए रात – दिन वापस नहीं लौटते हैं , उसी प्रकार यह जीवन पुनः सुलभ नहीं है ।। 73 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक