75. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

75. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

75. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

तिहुयण जणं मरंतं ,

दट्ठण नयंति जे न अप्पाणं ।

विरमंति न पावाओ ,

धिद्धि धिद्वत्तणं ताणं ॥७५ ॥

: अर्थ :

तीनों भुवन में जीवों को मरते हुए देखकर भी जो व्यक्ति अपनी आत्मा को धर्ममार्ग में जोड़ता नहीं है और पाप से रुकता नहीं है , वास्तव में उसकी धृष्टता को धिक्कार है ! ।। 75 ।।

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