Categories : Jain Stotra, JAINISM 75. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक तिहुयण जणं मरंतं , दट्ठण नयंति जे न अप्पाणं । विरमंति न पावाओ , धिद्धि धिद्वत्तणं ताणं ॥७५ ॥ : अर्थ : तीनों भुवन में जीवों को मरते हुए देखकर भी जो व्यक्ति अपनी आत्मा को धर्ममार्ग में जोड़ता नहीं है और पाप से रुकता नहीं है , वास्तव में उसकी धृष्टता को धिक्कार है ! ।। 75 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक