Categories : Jain Stotra, JAINISM 78. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक संसारो दुहहेऊ , दुक्खफलो दुस्सहदुक्खसरूवो य । न चयंति तं पि जीवा , अइबद्धा नेहनिअलेहिं ॥७८ ।। : अर्थ : जो दुःख का कारण है , दुःख का फल है और जो अत्यन्त दुःसह ऐसे दुखोंवाला है , ऐसे संसार को , स्नेह की साँकल से बँधे हुए जीव छोड़ते नहीं हैं ।। 78 ॥ Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक