79. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

79. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

79. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

नियकम्म पवण चलिओ

जीवो संसार काणणे घोरे ।

का का विडंबणाओ ,

न पावए दुसह दुक्खाओ ॥७ ९ ॥

: अर्थ :

अपने कर्मरुपी पवन से चलित बना हुआ यह जीव इस संसाररुपी घोर जंगल में असह्य वेदनाओं से युक्त कौन कौनसी विडंबनाओं को प्राप्त नहीं करता है ।। 79 ।।

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