Categories : Jain Stotra, JAINISM 79. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक नियकम्म पवण चलिओ जीवो संसार काणणे घोरे । का का विडंबणाओ , न पावए दुसह दुक्खाओ ॥७ ९ ॥ : अर्थ : अपने कर्मरुपी पवन से चलित बना हुआ यह जीव इस संसाररुपी घोर जंगल में असह्य वेदनाओं से युक्त कौन कौनसी विडंबनाओं को प्राप्त नहीं करता है ।। 79 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक