Categories : Jain Stotra, JAINISM 80. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक सिसिरंमि सीयलानिल- लहरिसहस्सेहिं भिन्न घणदेहो । तिरियत्तणंमि रण्णे , अणंतसो निहण मणुपत्तो ॥८० ॥ : अर्थ : हे आत्मन् ! तिर्यंच के भव में ठण्डी ऋतु में ठण्डी लहरियों से तेरा पुष्ट देह भेदा गया और तू अनन्ती बार मरा है ।। 80 ॥ Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक