80. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

80. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

80. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

सिसिरंमि सीयलानिल-

लहरिसहस्सेहिं भिन्न घणदेहो ।

तिरियत्तणंमि रण्णे ,

अणंतसो निहण मणुपत्तो ॥८० ॥

: अर्थ :

हे आत्मन् ! तिर्यंच के भव में ठण्डी ऋतु में ठण्डी लहरियों से तेरा पुष्ट देह भेदा गया और तू अनन्ती बार मरा है ।। 80 ॥

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