82. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

82. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

82. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

वासासु रणमज्झे ,

गिरिनिज्झरणोदगेहि वुज्झंतो ।

सीआनिलडज्झविओ ,

मओसि तिरियत्तणे बहुसो ॥८२ ॥

: अर्थ :

तिर्यंच के भव में जङ्गल में वर्षा ऋतु में झरने के जल के प्रवाह में बहते हुए तथा ठण्डे पवन से संतप्त होकर अनेक बार बेमौत मरा है ।। 82 ।।

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