Categories : Jain Stotra, JAINISM 84. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक दुट्टट्ठकम्मपलया- निलपेरिउ भीसणंमि भवरण्णे । हिंडंतो नरएसु वि , अणंतसो जीव ! पत्तोसि ॥८४ ॥ : अर्थ : हे जीव ! दुष्ट ऐसे आठ कर्मरुपी प्रलय के पवन से प्रेरित होकर इस भयड्कर जगल में भटकता हुआ तू अनन्त बार नरकगति में भी गया है ।।84।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक