84. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

84. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

84. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

दुट्टट्ठकम्मपलया-

निलपेरिउ भीसणंमि भवरण्णे ।

हिंडंतो नरएसु वि ,

अणंतसो जीव ! पत्तोसि ॥८४ ॥

: अर्थ :

हे जीव ! दुष्ट ऐसे आठ कर्मरुपी प्रलय के पवन से प्रेरित होकर इस भयड्कर जगल में भटकता हुआ तू अनन्त बार नरकगति में भी गया है ।।84।।

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