Categories : Jain Stotra, JAINISM 85. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक सत्तसु नरयमहीसु वज्जानलदाह सीअविअणासु । वसिओ अणंतखुत्तो विलवंतो करुणसद्देहिं ॥८५ || : अर्थ : जहाँ वज्र की आग के समान दाह की पीड़ा है और भयङ्कर असह्य शीतवेदना है ऐसी सातों नरक पृथवियों में भी करुण शब्दों से विलाप करता हुआ अनन्त बार रहा है ।।85 ॥ Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक