Categories : Jain Stotra, JAINISM 92. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक बुज्झसु रे जीव ! तुमं , मा मुज्झसु जिणमयंमि नाऊणं । जम्हा पुणरवि एसा , सामग्गी दुल्लहा जीव ! ॥९२ ॥ : अर्थ : हे जीव ! तू बोध पा ! जिनमत को जानकर तू व्यर्थ ही मोहित न हो ! क्योंकि इस प्रकार की सामग्री की पुनः प्राप्ति होता दुर्लभ है ।।92 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक