92. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

92. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

92. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

बुज्झसु रे जीव ! तुमं ,

मा मुज्झसु जिणमयंमि नाऊणं ।

जम्हा पुणरवि एसा ,

सामग्गी दुल्लहा जीव ! ॥९२ ॥

: अर्थ :

हे जीव ! तू बोध पा ! जिनमत को जानकर तू व्यर्थ ही मोहित न हो ! क्योंकि इस प्रकार की सामग्री की पुनः प्राप्ति होता दुर्लभ है ।।92 ।।

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