96. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

96. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

96. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

जह दिट्ठीसंजोगो ,

न होइ जच्चंधयाण जीवाणं ।

तह जिणमयसंजोगो ,

न होइ मिच्छंधजीवाणं ॥९६ ॥

: अर्थ :

: अर्थ : जन्म से अन्धे जीव को जिस प्रकार दृष्टि का संयोग नहीं होता है , उसी प्रकार मिथ्यात्व से अन्धे बने हुए जीव को भी जिनमत का संयोग नहीं होता है ।। 96।।

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