Categories : Jain Stotra, JAINISM 97. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक पच्चक्खमणंत गुणे , जिणिंदधम्मे न दोसलेसोऽवि । तहविहु अन्नाणंधा , न रमंति कयावि तम्मि जिया ॥ ९७ ॥ : अर्थ : जिनेश्वर के धर्म में प्रत्यक्ष अनंत गुण हैं और दोष नाम मात्र भी नहीं है , फिर भी खेद की बात है कि अज्ञान से अन्ध बने हुए जीव उसमें रमणता नहीं करते हैं ।। 97 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक