97. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

97. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

97. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

पच्चक्खमणंत गुणे ,

जिणिंदधम्मे न दोसलेसोऽवि ।

तहविहु अन्नाणंधा ,

न रमंति कयावि तम्मि जिया ॥ ९७ ॥

: अर्थ :

जिनेश्वर के धर्म में प्रत्यक्ष अनंत गुण हैं और दोष नाम मात्र भी नहीं है , फिर भी खेद की बात है कि अज्ञान से अन्ध बने हुए जीव उसमें रमणता नहीं करते हैं ।। 97 ।।

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