जैनो सोचो अवश्य विचारों…
हमारे कोई भी तहेवार को लेकर कोई न विरोध करते हैं।न कोई तपश्चर्या।
फिर हम मात्र हम जैन ही ये बकरीद को लेकर क्यो इतना कुछ करते हैं।
क्या ये दिन की उजवणी हम हमारी तरह कर रहे हैं??
अन्यधर्मी के तहेवार को हमें इतना महत्व क्यो देना चाहिए??
दिवाली पर आरंभ,समारंभ, फटाके,चटाके ये सब हिंसा का विरोध ऐसा ही कुछ तपश्चर्या कर के करना चाहिए??
ऐसा न हो कि कोई अन्यधर्मी ये बात को लेकर कोर्ट न जाये नही तो सब धर्मवालों की आंखे 4 हो जाएगी।
ये बकरी बचाने फंड करते ..उन को पूछना है कि ये जो पैसे आप देते हो उस से कसाई की खरीद शक्ति नही बढ़ती???
वो rs 700 में एक बकरी लेता है।हम उसे 1500 या वो जो पैसा कहे वो दे के हम छुड़वाते वो हमारे ही पैसे से 2 बकरी ले के आता है।
ये कौन सा धर्म????
अरे हा फिर ये बकरियां गौशाला में देते साथ में उस के जीवन निभाव के पैसे हम देते हैं???
अरे ये मत भूलो की ।। अहिंसा परमो धर्म।। जैनों का सूत्र नहीं है।
बौद्ध पिटक का सूत्र है।
हमारा सूत्र है ।। आणा ए धम्मो।।
अर्थात ।। जिनाज्ञा पालन ए धर्म।।
चलो बाते तो बहोत है
सब की अपनी अपनी सोच है।
प्रणाम आप सभी को।