✨माघ मास के दस लक्षण पर्व *31 जनवरी* से प्रारम्भ हो रहे हैं जोकि *9 फरवरी* तक चलेंगे।
✨दस लक्षण पर्व साल में तीन बार आते हैं। _माघ, चैत्र और भाद्रपद मास की पंचमी से चतुर्दसी तक_।
पर्युषण पर्व के पावन अवसर पर हम *१०८ मुनिवर क्षमासागरजी* महाराज के दश धर्म पर दिए गए प्रवचनों का सारांश रूप प्रस्तुत करेंगे । पूर्ण प्रवचन “गुरुवाणी” शीर्षक से प्रेषित पुस्तक में उपलब्ध हैं। हमें आशा है कि इस छोटे से प्रयास से आप लाभ उठाएंगे और अपने जीवन को अच्छा बनाने की ओर एक कदम बढ़ाएँगे ।
पर्यूषण का उद्देश्य :
पर्यूषण के दस दिन, हमारी वास्तविक अवस्था की ओर अग्रसर होने के, प्रयोग के दिन हैं। हमने अपने जीवन में जिन चीजों को श्रेष्ठ माना है, इन विशिष्ट दिनों में प्रकट करने की कोशिश भी करनी चाहिए। ये दस दिन हमारे प्रयोग के दिन बन जायें, यदि इन दस दिनों में हम अपने जीवन को इस तरह की गति दे सकें ताकि जो शेष जीवन के दिन हैं वे भी ऐसे ही हो जायें ; इस रूप के हो जायें वे भी इतने ही अच्छे हो जायें जितने अच्छे हम ये दस दिन बिताएंगे।
हम लोग इन दस दिनों को बहुत परंपरागत ढंग से व्यतीत करने के आदी हो गये हैं । हमें इस बारे में थोडा विचार करना चाहिए। जिस तरह परीक्षा सामने आने पर विधार्थी उसकी तैयारी करने लगते हैं । जब घर में किसी की शादी रहती है तो हम उसकी तैयारी करते हैं वैसे ही जब जीवन को अच्छा बनाने का कोई पर्व, कोई त्यौहार या कोई अवसर हमारे जीवन में आये, तो हमें उसकी तैयारी करना चाहिए। हम तैयारी तो करते हैं लेकिन बाहरी मन से, बाहरी तैयारी ये है कि हमने पूजन कर ली, हम आज एकासना कर लेंगे, अगर सामर्थ्य होगा तो कोई रस छोड़ देंगे, सब्जियां छोड़ देंगे, अगर और सामर्थ्य होगा तो उपवास कर लेंगे। ये जितनी भी तैयारियाँ हैं , यह बाहरी तैयारियाँ हैं , ये जरूरी है लेकिन ये तैयारियाँ हम कई बार कर चुके हैं ; हमारे जीवन में कई अवसर आये हैं ऐसे दशलक्षण धर्म मनाने के। लेकिन ये सब करने के बाद भी हमारी लाइफ-स्टाइल में कोई परिवर्तन नहीं हुआ तो बताइएगा कि इन दस दिनों को हमने जिस तरह से अच्छा मानकर व्यतीत किया है उनका हमारे ऊपर क्या असर पड़ा?
यह प्रश्न हमें किसी दुसरे से नहीं पूछना, अपने आप से पूछना है। यह प्रश्न हम सबके अन्दर उठना चाहिए। इसका समाधान, उत्तर नहीं, उत्तर तो तर्क (logic) से दिए जाते हैं , समाधान भावनाओ से प्राप्त होते हैं । अत: इसका उत्तर नहीं समाधान खोजना चाहिए। इसका समाधान क्या होगा? क्या हमारी ऐसी कोई तैयारी है; जिससे कि जब क्रोध का अवसर आयेगा तब हम क्षमाभाव धारण करेंगे; जब कोई अपमान का अवसर आएगा तब भी हम विनय से विचलित नहीं होंगे; जब भी कोई कठिनाई होगी तब भी, उसके बावजूद भी हमारी सरलता बनी रहेगी; जब मलिनताएँ हमें घेरेंगी तब भी हम पवित्रता को कम नहीं करेंगे; जब तमाम लोग झूठ के रस्ते पर जा रहे होंगे तब भी हम सच्चाई को नहीं छोड़ेंगे ; जब भी हमारे भीतर पाप-करने का मन होगा तब भी हम अपने जीवन में अनुशासन व संयम को बरक़रार रखेंगे ; जब हमें इच्छाएं घेरेंगी तो हम इच्छाओ को जीत लेंगे ; जब सारी दुनिया जोड़ने की दौड़ में, होड़ की दौड़ में शामिल है तब क्या हम छोड़ने की दौड़ लगा पाएंगे; जबकि हम अभी दुनिया भर की कृत्रिम चीजों को अपना मानते हैं ? क्या एक दिन ऐसा आएगा कि हम अपने को भी सबका मानेंगे? जब हम इतने उदार हो सकेंगे कि किसी के प्रति भी हमारे मन में दुर्व्यवहार व इर्ष्या नहीं होगी !!
क्या इस तरह की कोई तैयारी एक बार भी हम इन दस दिनों में कर लेंगे? एक बार हम अपने जीवन चक्र को गति दे देंगे तो वर्ष के शेष तीन सौ पचपन दिन और हमारा आगे का जीवन भी सार्थक बन जायेगा। प्राप्त परंपरा में दस प्रकार से धर्म के स्वरुप बताये गए हैं । उनको हम धारण करें इसके लिए जरुरी है कि पहले हम अपनी कषायों को धीरे-धीरे कम करते जायें।
वास्तव में इन दस दिनों में अपनी भीतर कहीं बाहर से धर्म लाने की प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए बल्कि हमारे भीतर जो विकृतियाँ हैं उनको हटाना चाहिए। जैसे-जैसे हम उनको हटाते जायेंगे धर्म आपो-आप हमारे भीतर प्रकट होता जायेगा।
यह पर्युषण पर्व आपके जीवन को एक नई दिशा प्रदान करे !!!
जय जिनेन्द्र !