श्री नवपद ओली आराधना
प्रथम दिवस :
श्री अरिहंत पद आराधना
( रंग – सफेद वर्ण ) काऊसग्ग 12 लोगस्स
प्रदिक्षणा -12, खमासमणा -12,
स्वस्तिक -12, आयम्बिल : चावल
नवकारवाली -20, ॐ ह्री नमो अरिहंताणं
आसोज सुदी ७ से १५ तक ! नवपद ओली आराधना का प्रारंभ आसोज माह से किया जाता है, एवं कुल ९ ओली अर्थात् चाढ़े चार वर्ष तक कुल ८१ आयंबिल के साथ यह तप पूर्ण होता है ! नवपद आराधना में आज प्रथम पद में अरिहंत पद की आराधना की जाती है अरि यानि शत्रु हंत यानि नाश करने वाले… शत्रुओ का नाश करने वाले अरिहंत कहलाते है… अरिहन्त अपने कर्म रूपी शत्रु का नाश करते है… अगर अरिहंत नही होते तो करुणा का इतना प्रचार नही होता।।। धर्म का ज्ञान नही होता।।। शासन की स्थापना नही होती।।। in short सद्गति और पूण्य भी नही होता।।। अरिहंत परमात्मा की देशना से इन सब बातो का ज्ञान सारे जगत को हुआ अरिहन्त परमात्मा के १२ गुण होते है।।। ८ गुण देवता करते है परमात्म भक्ति से प्रेरित होकर।। ४ गुण कर्मक्षय होने पर प्रकट होते है।।।
१. अशोक वॄक्ष- जो परमात्मा के शरीर से १२ गुना बड़ा होता है।।
२. सुर पुष्प वृष्टि- परमात्मा के विचरण क्षेत्र में देवता विविध फूलों की बरसात करते है।।
३. दिव्य ध्वनि- विविध वाद्य यंत्रों को बजाकर देवता दिव्य नाद करते है।।
४. चामर युगल- अरिहंत प्रभु के दोनों तरफ देवता खड़े खड़े चामर से प्रभु की सेवा करते है।।। उसे विन्जना कहा जाता है
५. स्वर्ण सिंहासन- प्रभु के बैठने के लिए दिव्य सिंहासन की रचना देवता करते है।।
६. भामंडल- प्रभु के मस्तक के पीछे सूर्य के सामान जो आभामंडल होता है जिसे भामंडल कहते है।। इस भामंडल के द्वारा ही हम अरिहंत प्रभु का मुख को निहार सकते है।
७. देव दुंदुभी- से दिव्य नाद द्वारा देवता सभी दिशाओ में प्रभु की जय जयकार करते है।।
८. छत्र- प्रभु के सर के ऊपर ३ छत्र की रचना देवता करते है। कर्मक्षय से प्रकट होने वाले गुण 1 ज्ञानातिशय २ पूजातिशय ३ वचनातिशय। ४ अपायापगमातिशय।। ऐसे गुण संपत्ति वाले देव देवेंद्रो से पूजित, तीन लोक के आधार अरिहंत परमात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ। जगत में पूजनीय वंदनीय सेवनीय और तारने वाले ये एक ही उत्तम आत्मा है।। ऐसा सोचकर नवकार के प्रथम पद से हमे अरिहंत परमात्मा को भाव पूर्वक वंदन करना चाहिए। अरिहंत पकर्मात्मा की आराधना के लिए १२ खमासमन १२ लोगस्स का काउसग्ग १२ नवकार मंत्र की माला आदि विधि करनी चाहिए। अरिहंत परमात्मा के ३४ अतिशय (विशेष प्रभाव) होते है। वाणी के ३५ गुण होते है।। अरिहंत परमात्मा की भक्ति को अपने जीवन में प्रथम स्थान देना है। आज से सोते उठते बैठते आते जाते जब कभी भी हम (हे राम, ए माँ, हे भगवान्) बोलते है उसकी जगह हमे हे अरिहंत प्रभु बोलकर अपनी श्रद्धा को प्रकट करके मजबूत करना है।। परमात्मा की आज्ञा के विपरीत कहा गया हो तो मिच्छामि दुक्कडं। अनंत उपकारी जिनेश्वर एवं गुरु भगवंतों की हमारे उपर असीम कृपा है, जिन्होंने समग्र सृष्टि को कल्याणमय मार्ग- दर्शन किया है !
जिनवाणी सार : तन-मन-धन से समर्पित भाव पूर्वक की गयी आराधना अवश्य ही आत्मा को क्रमश: जिनशासन, स्वर्ग, मोक्ष सुख प्रदान करते हुए परमात्मा भी बनाती है !!
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