Shri Shankheshwar Parshwanath Bhagwan Stuti
ॐ हीं श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः
जेना गुणों ने वर्णवा श्रुत-सागर ओछा पडे,
गंभीरता ने मापवा सहु सागरो पाछा पडे,
जेनी धवलता आगले क्षीरसागरो झांखा पडे,
प्रभु पार्श्व ने भावे करु हुं वंदना (१)
जेना वदन नुं तेज निरखी सूर्य आकाश में,
वली नेत्रना शुभ पीयूष पामी चन्द्र निशाए जगे,
जेनी कृपा वृष्टि थकी आ वादलाओ वरसतां,
“शंखेश्वरा” प्रभु पार्श्व ने भावे करु हुं वंदना (२)
अतीत चोवीशी तणा नवमा श्री दामोदर प्रभु,
अषाढी श्रावक पूछता को मारा तारक विभु,
ह्या जागा प्रभु पार्श्व ने प्रतिमा भरावी पूजा,
“शंखेश्वरा” प्रभु पार्श्व ने भावे करु हुं वंदना (३)
सौधर्म कल्पादि विमान पूज्यता जैन रहो,
वली सूर्य चन्द्र विमान मा पूजा थइ जेनी सही,
जे नागलोक नाथ बनीने शांति सुखने अर्पित,
“शंखेश्वरा” प्रभु पार्श्व ने भावे करु हुं वंदना (४)
आलोकमां आ काली मां पूजा आदिकाल थी
वली नमि विनमि विद्याधरो जेने सेवे बहुमानथी,
त्यांथी धरणपति लही प्रभुने निज भवन पधरावता,
“शंखेश्वर” प्रभु पार्श्व ने भावे करु हु वंदना (५)
जरासंध विद्या जरा ज्यां जादवो ने घेरती,
नेमि प्रभु उपदेशथी श्री कृष्ण अट्ठमने तपी,
पद्मावती बहुमानथी प्रभु पार्श्व प्रतिमा आपती,
“शंखेश्वरा” प्रभु पार्श्व ने भावे करु हुं वंदना (६)
जेना न्हवणथी जादवोनी जरा दूरे भागती,
शंखध्वनि करी स्थापता त्यां पार्श्वनी प्रतिमा खरी,
जेना प्रभाव नृपगणो ना रोग सहु दूरे थता,
“शंखेश्वरा” प्रभु पार्श्व ने भावे करु हुं वंदना (७)
जेना स्मरण थी भाविक ना इच्छित कार्यो सिद्धि,
जे नाम था पण विषधरोना विष अमृत बनी जता,
जेना पूजनथी पापीओना पाप ताप शमी जता,
“शंखेश्वरा” प्रभु पार्श्व ने भावे करु हुं वंदना (८)
ज्यां कामधेनु काम घटना सुरतरु पाछा पडे,
चिंतामणी पारसमणीना तेज ज्यां झांसी पडे,
मनी मंत्र तंत्र ने यंत्र जेना नामथी फल आपता,
“शंखेश्वरा” प्रभु पार्श्व ने भावे करू हुं वंदना (९)