नित्य आराधना विधि | Nitya Aaradhana Vidhi
ईशान कोने के सन्मुख श्री सीमंधर स्वामी प्रभु को तीन खमासमण
देकर प्रार्थना करना, हे परमतारक देवाधिदेव प्रभो ! अनादिकाल से आज
तक अनंत भवों में मेरे जीव ने जो कोई हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन,
परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशून्य,
परपरिवाद, रतिअरति, मायामृषावाद और मिथ्यात्वशल्य ये अठारह
पापस्थानक सेवन किये हो, सेवन कराये हो, करते का अनुमोदन किया
हो, दूसरा जो कोई वीतराग परमात्मा की आज्ञा विरुद्ध आचरण किया
हो, कराया हो, अनुमोदन किया हो उसके लिये मैं त्रिविधे मिच्छामि
दुक्कडं देता हूँ, मिच्छामि दुक्कडं देता हूँ, मिच्छामि दुक्कडं देता हूँ।
हे प्रभो ! पहले अनंत भवों में मेरे जीवने जो कोई श्री अरिहंत
देव, गुरु भगवंत, श्री जैन धर्म की आराधना की हो आशातना की हो,
उत्सूत्र प्ररुपणा की हो उसके लिये मैं मिच्छामि दुक्कडं देता हूँ,
मिच्छामि दुक्कडं देता हूँ।
हे प्रभो ! आपकी भक्ति के प्रभाव से मुझे श्री सम्यग्दर्शन-ज्ञान
चारित्ररुप रत्न की प्राप्ति हो । भवोभव आपके चरण की सेवा मिले।
जिसके प्रताप से मैं जिनआज्ञा अनुसार आराधना करने पूर्वक कर्मों का
नाश करके मोक्ष सुख प्राप्त करू ।
हे प्रभो ! आपकी कृपा से मुझे ऐसी शक्ति प्राप्त हो, जिसके द्वारा
मैं मेरे कर्तव्य, नीति-न्याय-अहिंसा-सत्य-अचौर्य-ब्रह्मचर्य-अपरिग्रह
व्रतों का पालन कर सके, प्राणी मात्र के प्रति मैत्री भावना, गुणवान प्रति
प्रमोद भावना, दीन दुःखी प्रति करुणा भावना, धर्म रहित प्रति मध्यस्थ
भावना लाने वाला बनू ।
सर्वे सहु सुखी थाओ, पाप न कोई आचरो,
राग द्वेष थी मुक्त थाने मोक्ष सुख सहु जग वरो ।