जिनालय में ध्यान में रखने लायक सूचना
१. प्रभु दर्शन या पूजा करने के लिए मन्दिर कभी भी खाली हाथ नहीं
जाना चाहिए। धूप अक्षत, पूजा के उपकरण तथा भंडार में डालने
के लिए पैसे भी अवश्य साथ में लेकर जाना चाहिए।
२. मंदिर पूजा-दर्शन करने आते-जाते वहां बैठे हुए गरीबों को
हमेंशा यथाशक्ति दान देना चाहिए ।
३. मन्दिर के कंपाउन्ड में प्रवेश करने के बाद संबंधियों-परिचितों
के साथ परस्पर के समाचार नहीं पूछना चाहिए ।
धंधे या संसार संबंधी कोई भी बातचीत नहीं करना चाहिए ।
४. पान पराग, गुटखा, बीड़ी, दवा, खाने-पीने की वस्तु या तेल.
बजर सुंघने की, लगाने की कोई भी चीज जेब से निकाल
करके ही मन्दिर में प्रवेश करना चाहिए क्योंकि ये सभी चीज
मंदिर में ले जाना उचित नहीं है और ले जाने के बाद वापरने
में प्रभुजी के विनय का भंग होता है
५. झूठा मुंह साफ करके ही मन्दिर में प्रवेश करना चाहिये।
६. तिलक करते समय काच में बाल समारना या कपड़े ठीक-ठाक नहीं करना चाहिये ।
प्रभुजी की नजर पड़ती हो ऐसे स्थान में तिलक नहीं करना चाहिए तथा
हार या मुकुट नहीं पहनना चाहिये।
७. दर्शन-पूजा करते पीछेवाले को और स्तुति, चैत्यवंदन बोलते
समय दूसरे को अन्तराय नहीं पड़े, इसका बराबर ख्याल रखना।
गभारे में प्रवेश करने से पहले….
८. अष्टपडवाला मुखकोश बांधे बिना गभारे में प्रवेश नहीं करना
चाहिए । गवारा में दोहे मन में बोलने चाहिये ।
९. पूजा करते समय भाईयों को खेस से ही अष्ट पडवाला मुखकोश बांधना चाहिये ।
रुमाल वापरना उचित नहीं है।
१०. पूजा करने का हाथ पानीसे धोकर, धूप से धुपित करके, पवित्र करने के बाद गभारे की
चौखट में शरीर या कपड़े पर नहीं लगाते सीधी
पूजा करने के लिये उपयोग रखने का आग्रह रखना चाहिए।
११. पूजा करते समय घड़ी पहनना योग्य नहीं है, हाथ की अंगुलियों
में अंगूठी तथा शरीर में आभूषण यथाशक्ति अवश्य पहनना चाहिए।
१२. पंचधातु के प्रभुजी को एक हाथ से नहीं पकड़ना चाहिए । दोनों
हाथ से बहुमानपूर्वक थाली में लेना चाहिये ।
१३. पूजा करते शरीर, सिर विगेरे खुजालना नहीं चाहिए ।
छींक, उबासी, डकार, छोट विगेरे नहीं करना चाहिए ।
करने की शक्यता लगे तो गभारे से बाहर निकल जाना चाहिए ।
कार्य पूर्ण होने के बाद हाथ आदि अशुद्ध हुए हो तो धोकर शुद्ध करना।
पूजा में भावों की वृद्धि कैसे करेंगे…
१४. अष्टप्रकारी पूजा और नवांगी पूजा करने से पहले उसका भावार्थ
अच्छी तरह शांति से पढ़कर सोचना चाहिए और करते समय
भाव से करना चाहिए । सभी भगवान की टाईपिस्ट की तरह
जल्द-जल्द पूजा करने के बजाय अर्थ समझकर विधि और
भक्ति के साथ शक्य हो इतने भगवान की शान्ति से पूजा करना
चाहिए। वह हमारे भावों की वृद्धि के लिये लाभदायी बन सकता
है। उसमें मन लगाने से सभी सिद्ध हो जाता है। प्रभुजी को
चंदन पूजा लोकप्रिय राजा को विजय तिलक करे, उससे भी
अधिक धीरज से, प्रेम से उल्लासपूर्वक, भावना भाते हुए करना
चाहिये।
१५. दूध के प्रक्षाल की धारा प्रभुजी के मस्तक-शिखा से करनी
चाहिए। नवांगी पूजा की तरह १-१ अंग पर करने की विधि
नहीं है।
१६. प्रभुजी के अंगलुंछणे मुलायम तथा स्वच्छ होना चाहिये ।
अंगलुंछणे पवित्र रखना । अपने शरीर को या वस्तु को छुए नहीं इसका विशेष
ध्यान रखना चाहिए । अंगलुंछणे थाली में ही रखना चाहिए ।
अपनी गोद में जमीन पर या हर कहीं नहीं रखने चाहिए ।
देव देवियों के लिये उपयोग किये गये अंगलूंछणे प्रभुजी के अंग के
लिये नहीं वापरना चाहिए ।
पूजा कौन से क्रम से करोगे…
१७. (१) पहले मूलनायक जी, बाद में
(२) दूसरे भगवान, तथा
सिद्धचक्र जी का गट्टा, बाद में
(३) और मूर्ति, और अन्त में देव देवियों के कपाल पर दायें अंगुठे से बहुमान
स्वरुप एक ही तिलक करना ।
३०. पूजा करने के बाद थाली-कटोरी धोकर उसके स्थान पर रखना
चाहिये । जहा-तहा नहीं रखना चाहिए ।
३१. पूजा के वस्त्रो से थाली, कटोरी साफ नहीं करना चाहिए ।
शरीर का पसीना या हाथ पौंछना, वह आशातना कहलाती है।
३२. नैवेद्य पूजा में पीपरमेंट-चोकलेट, बाजार की मिठाई या
अभक्ष्य चीज रखना उचित नहीं है।
३३. अक्षत, नैवेद्य या फल पूजा में एक बार चढ़ाये हुए अक्षत, मिश्री
बादाम या नारियल आदि वस्तु दूसरी बार पूजा के उपयोग में या
खाने के उपयोग में नहीं लेना चाहिये ।
३४. स्वस्तिक करने की क्रिया और चैत्यवंदन एक साथ में नहीं करना
चाहिए । दो क्रिया साथ में करने से गड़बड़ हो जाती है तथा
क्रिया का हार्द सही नहीं रहता ।
चैत्यवंदन करते समय…
३५. चैत्यवंदन करने से पहले तीसरी निसीहि द्वारा सभी द्रव्यपूजा का
त्याग करना है । इसलिये चैत्यवंदन करते समय कोई अपना
पाटला ले ले या स्वस्तिक बिगाड़ दे तो उसको रोकना नहीं
चाहिए । चैत्यवंदन पूर्ण नहीं हो, वहाँ तक पाटला अपने सामने
या साथ में ही रहे, वह जरुरी नहीं है।
३६. चैत्यवंदन करते समय पच्चक्खाण नहीं लेना तथा गुरु भगवंत
स्तुति या चैत्यवंदन विधि करते हो, तब उनकी भक्ति में विघ्न
करके पच्चक्खाण नहीं मांगना ।
क्या आप जानते हो…?
३७. प्रभुजी के अंग से केसर उतारना, अंगलुंछणे से युद्ध करना,
मन्दिर में काजा लेना, थाली-कटोरी साफ करना, पाटले आदि
उपकरणा व्यवस्थित रखना विगेरे कार्य भी प्रभुजी की भक्ति रूप
ही है। वह कार्य स्वयं करने से अशुभ कर्मों का नाश होता है
और उत्तम गुणों की प्राप्ति होती है इसलिये ऐसे उत्तम प्रभु-सेवा
के कार्य करने में संकोच नहीं करना चाहिए ।
३८. परमात्मा का हवन जल पवित्र होने से लेते समय उसके बिन्दु
जमीन पर नहीं पड़े, इसका खास ध्यान रखना चाहिए । न्हवण
के कटोरे में पाँचों उंगली डालने के बजाय एक या दो उंगली
से न्हवण जल केवल एक ही बार लेना चाहिए । न्हवण जल
नाभि से उपर के भाग पर लगाना चाहिए ।
बहनों के लिये विशेष सूचना…
३९. प्रभु दर्शन और पूजन करते समय बहनों को अवश्य सिर ढाकना
चाहिये । वस्त्र भी अपनी संस्कृति को शोभा दे वैसे पहनना
चाहिये । मर्यादा वाले वस्त्रों में प्रभु प्रति पूज्यभाव और विनयभाव
प्रगट होता है । अंगोपांग दिखाई दे ऐसे पारदर्शी वस्त्र या दूसरों
को अशुभभाव उत्पन्न हो वैसे भड़काऊ कलर के टाईट वस्त्र
पहनकर मन्दिर में आना उचित नहीं है।
पूजा तथा भावना में…
४०. पूजा तथा भावना में पुरुषों के सामने बहनों को गाना नहीं चाहिए
और डांडीया लेना नहीं चाहिए । पूजा तथा भावना में भाई-बहनों
को आमने-सामने मुंह रख करके बैठना नहीं चाहिए परन्तु प्रभुजी
के सन्मुख मुंह रखकरके भाइयों को आगे और बहनों को पीछे
बैठना ज्यादा उचित है।
४१. पूजा के वस्त्र शरीर से उतारने के बाद जहा -तहा दूसरे वस्त्रों के
साथ रखने से अथवा दूसरे वस्त्रों के साथ में धोने से अपवित्र
बन जाते हैं इसलिये अलग रखना तथा अलग धोना चाहिये ।
४२. पूजा के वस्त्र हमेशा और संभव नहीं हो तो जितने जल्दी हो सके
उतने धोते रहना चाहिये, जिससे वह स्वच्छ और पवित्र रहे ।
४३. पुरानी या फटी हुई धार्मिक पुस्तकें और चित्र मन्दिर में कहीं भी
छोड़कर जाना योग्य नहीं है।
४४. प्रभु की पूजा प्रभु के लिये नहीं है परन्तु अनादिकाल से
भूले हुए अपने आत्मस्वरूप की प्रकृति, अनुभूति और प्राप्ति
के लिये है।
४५. प्रभु केरल दर्शनीय नहीं है, प्रभु तो पूजनीय भी है। पूजनीय प्रभु
के केवल दर्शन करके संतोष मानना यह भी एक तरह की उपेक्षा
कहलाती है। इसीलिये जो भाग्यशाली केवल दर्शन करके संतोष
मानते हैं, उनको जल्दी से जल्दी प्रभु पूजा की शुरूआत करना
चाहिये ।