प्रश्न : अष्टप्रकारी पूजा की विधि – विधि क्या है, जानते हो ?
(२) पूजाविधि
गाय के शुद्ध दूध से भरे हुए कलश को दोनों हाथ में पकड़कर
भाव से मौन पूर्वक ‘मेरुशिखर’ मन में बोलते हुए अभिषेक
करना चाहिए । अभिषेक मस्तक से करना चाहिए । फिर पानी
से अभिषेक । तीन अंगलुंछणा करना । पानी बाकी नहीं रहे वैसे,
धीरे धीरे भगवान को सूखाना चाहिए । हो सके तो खसूची
का प्रयोग नहीं करना।
चंदन से विलेपन करना चाहिए, फिर नवांगी पूजा करना चाहिए।
लंदन और परिवार में रहे हुए हाथी-घोड़े-बाघादिक की पूजा नहीं
करना, प्रभु के हाथ में पूजा नहीं करना, पहले मूलनायक बाद
में दूसरे भगवान, गुरु, देव-देवी इस क्रम से पूजा करना चाहिए।
गुरु की पूजा सिर्फ दाएं (जमणा) अंगुठे पर ही करना चाहिए।
फूल अखण्ड चढ़ाना, पंखुड़ी तोड़कर नहीं चढ़ाना चाहिए ।
बाद में धूप, दीप, चामर, दर्पण, अक्षत, नैवेद्य, फल इत्यादि अष्टप्रकारी
पूजा करना चाहिए।
निसीहि बोलकर चैत्यवंदन करना चाहिए । चैत्यवंदन के समय
कोई पाटला ले ले या साथियां बिगाड़ दे तो कषाय नहीं करना चाहिए ।
अंत में घंटनाद और शंखनाद करके भगवान को पीठ
नहीं लगे वैसे बाहर निकलना ।
प्रश्न : पूजा करने वाले के सामने खड़े होते विविध प्रश्नों
के समाधान क्या ? वह जानना है !
सिद्धचक्र की पूजा करने के बाद उसी केसर से अरिहंत भगवान
की पूजा करने में दोष नहीं है। .
प्रभु दर्शन-पूजन भवरोग को मिटाकर मोक्ष सुख देता है इसलिये
प्रभो ! मुझे मोक्ष दो ऐसी सुंदर भावना करके अष्टमंगल आलेखना
चाहिए । उसकी पूजा नहीं करना इसलिये अंत में चार उंगली कटोरी
में डालकर एक-एक मंगल पर मैं आलेखन करता हू, ऐसे भाव से
लगाओ ।
फन भगवान के अंग नहीं हैं इसलिये नवांगी पूजा में नहीं आते
हैं, नव अंगों के अलावा केसर की टिक्की नहीं करनी चाहिए ।
भगवान का रूप बढ़े वैसी आंगी करना चाहिए ।
पंच धातु के प्रतिमा जी को एक हाथ से नहीं पकड़ना चाहिए।
दोनों हाथ में बहुमान से लेना चाहिए ।
नियम का लाभ अपार है इसलिये हमेशा मंदिर जाने का नियम
ले लो।
प्रभु दर्शन पूजन के समय प्रभो ! मैं पापी हू, मेरा उद्धार करो !
विनय सभर भावना रखना चाहिए । मंदिर से वापस घर जाते समय
मैं वापस जल्दी आऊंगा, ऐसी लगन अनुभव करना चाहिए ।
पूजा से शांति और परम शांति मिलती है (चित्त प्रसन्ने पूजन फल
कहा) भगवान इस विश्व की अचिंत्य शक्ति है, सर्वोच्च सत्ता है, ऐसा
हमेशा अनुभव करना ।
पुजारी के पास निजी कोई काम नहीं करना । घर साफ करे तो
कर्मबंध होती है और मंदिर साफ करे तो कर्म धुलते है।
कोई कारणसर पूजा नहीं हुई हो तो झाड़ू लेकर मंदिर में स्वच्छता
करनी, यह भी लाभ है, प्रभु भक्ति का प्रकार है।