Aacharya Pad 36 Gun | Navpad Aaradhna
आचार्य पद के 36 गुणों
पांच इन्द्रियों को वश में रखनेवाले, नवविध ब्रह्मचर्य की रक्षा करने वाले, क्रोधादि चार प्रकार के कषायों से मुक्त, पांच महाव्रतों से युक्त, पांच प्रकार के आचारों के पालन करने में समर्थ, पांच समिति और त्रण गुप्ति से युक्त, इस प्रकार छत्तीस गुणों से युक्त आचार्य भगवंत है।
जैन शासन की धूरा सम्हालने वाले श्री आचार्य भगवंतों के गुणों का वर्णन पंचिदिय सूत्र में बताया गया है।
पांच इन्द्रिय होती हे उनके 23 विषय और 240 विकार होते हे। रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द रूप इन्द्रियों के विषय सेवन को विषय कहते हे ऐसे पांच इन्द्रिय के 23 विषय हे और उसके विकार 240 हे| विषय को विष की उपमा दी गई हे यही विषय जीव के अंदर विष जैसा कार्य करते हे| विषयो का सेवन भोग लालसा बढ़ाता रहता है जिससे जीव संसार के मोह में फंसता रहता है ग्रहण किये हुए विषयो पर अच्छा बुरा मानकर राग द्वेष करना विकार है। आचार्य भगवंत शील धर्म की आराधना में लीन रहते है जिसके कारण चतुर्थ व्रत के पालन के लिए ब्रह्मचर्य की रक्षा 9 वाड (नियम) के साथ करते हैं। क्रोध-मान-माया-लोभ रुपी चारों कषायों से मुक्त रहते हैं। जो जीवन को धर्म मार्ग से भ्रष्ट करके दूर्गति की और ले जाते है, वैसे कषायों से आचार्य भगवंत मुक्त रहते हैं। संयम जीवन के पांच महाव्रत का पूर्णतः पालन करने हेतु सदा जागृत रहते हैं। अपने लिए हुए व्रत का पालन करना और साथ ही अन्य लोगों को धर्म मार्ग में आकर्षित करने का कार्य आचार्य भगवंत करते हैं। जो पाँच आचारों का स्वयं पालन करते हैं और दूसरे मुनियों से कराते हैं, मुनि संघ के अधिपति हैं और शिष्यों को दीक्षा व प्रायश्चित्त आदि देते हैं, वे आचार्य परमेष्ठी हैं।
पांच समिति –
१. इय समिति – चलते समय या हिलते-डुलते समय सावधानी रखना।
२. भाषा समिति – पापकारी भाषान बोलना।
३. एषणा समिति – भिक्षाचारी में भोजन या पानी की गोचरी करते समय सावधानी पूर्वक गवेषणा करना |
एषणा समिति ३ प्रकार की होती है .
1-गवेषणा – खाद्य-सामग्री लेने से पहले अच्छी तरह जांच-पड़ताल करना ।
२. ग्रहण एषणा – भिक्षा की सामग्री का खुद निरीक्षण करना |
३. परिभोगैषना – परिभोग करने के तरीके की जांच करना।
४. आदान– निक्षेप समिति भिक्षा की सामग्री लेते समय और बाद में उसके रख रखाव ( वह स्थान जहां वह सामग्री राखी जाती है) का ख्याल रखना
५. उत्सर्ग-समिति किसी वस्तु का उत्सर्ग करते समय स्थान की देख-भाल करना .
तीन गुप्ति १. काय गुप्ति – शरीर का अनुशासन २. वचन-गुप्ति– वचन का अनुशासन | ३. मनो-गुप्ति – मन का अनुशासन | गुप्ति का अर्थ है- गोपन, संवरण शरीर को स्थिर कर, मन को शांत कर, मौन होकर कुछ समय के लिए वचन को विश्राम देना, 36 गुणों के धारक आचार्य श्री को नमन वंदना…