जेनी कीकी काळी छे, ने आंख रूपाळी छे (२)
हो. आदीश्वरनुं मुख मलकतुं, रूपनी प्याली छे
मंदिरोनी नगरीमां, जाहोजलाली छे जेनी…
मरूदेवा माँ हरखावे, पुंडरिक स्वामी,
जेनी आंखमां आंख मिलावे,
शेत्रुजी नदीनां पाणी… हा पाणी,
लई आवे ने, संघ तने नवरावे,
एनां उपर, छाया करवा, रायण-डाळी छे
मंदिरोनी नगरीमां, जाहोजलाली छे… जेनी…
अहीं कहेनारा छे झाझा… हां झाझा,
सांभळनारा, एक ऋषभ महाराजा,
कोई वातो करतुं गातुं… छलकातु,
कोई वाता करतु गातु…छलकातु,
कोई मारा जेतुं, आंसुमां अटवातुं,
सार करे, संभाळ करे एनी प्रीत निराळी छे
मंदिरोनी नगरीमां, जाहोजलाली छे… जेनी…
तमे श्वास लईने बेठां… हां बेठां,
पण तो, श्वास थईने बेठां,
तुज द्वार बजे शहेनाई… शहेनाई,
मारा हैयानी, ऋषभ संग सगाई
ऋषभ-कथा तो, “उदयरत्न” ने, व्हाली व्हाली छे
मंदिरोनी नगरीमां, जाहोजलाली छे… जेनी…
रचना: प. पू. आचार्य उदयरत्नसूरिजी म. सा.)