पद्मप्रभु शुं मन लय लीने, पद्म समी जस कायजी,
पद्म लंछन पद्मासन पुरे, बेठा श्री जिनरायजी पद्मप्रभु… (१)
चंचल मन छे तो पण दर्शन, दीठे थाये करारजी;
महेर नजरथी निरखो साहिब,
तो बि पखिथी निरधारजी पद्मप्रभु… (२)
मीठी मूरति सुरति ताहरी, पूरित अमृत धारजी;
अवर नजरमां नावे एवी, जो रूप होवो अपारजी पद्मप्रभु… (३)
आदर करीने आश धरीजे, समरथनी सुवारजी;
भाग्य फले आ वखते सारुं, एह जवाब खरारजी पद्मप्रभु… (४)
रांक तणी रंग एहज पूरण, तुंही श्री जिनराजजी;
* वंछित दान दयाकर विमल, पद आतमनुं काजजी पद्मप्रभु… (५)