ऐसे स्वामी सुपार्श्व से दील लगा दुःख भगा, दुःख भगा,
जगतारणा, सुख जगा, जगतारणा;
राजहंसकुं मान सरोवर, रेवा-जल जयुं वारणा;
खीर सिंधु जयुं हरिको प्यारो, ज्ञानीकुं तत्त्वविचारणा ऐसे… (१)
मोरकुं मेह चकोरकुं चंदा, मधुं मन्मथ चित्त ठारना;
फुल अमूल भमरकुं अंबही, कोकिलकुं सुखकारणा ऐसे… (२)
सीताकुं राम काम जयं रतिकुं, पंथीकुं घर- बारणा;
दानीकुं त्याग, योग बंभनकुं, जोगीकुं संजम धारना ऐसे… (३)
नंदनवन जयं सुरकुं वल्लभ, न्यायीकुं न्याय निहारना;
त्युं मेरे मन तुं ही सुहायो, ओर तो चित्तसे उतारना ऐसे… (४)
श्री सुपार्श्व दर्शन पर तेरे,
कीजे कोडि श्री नयविजय विबुध सेवककुं, दियो समतारस पारणा ऐसे… (५)