अब मोहे अैसी आय बनी
श्री शंखेश्वर पास जिनेसर मेरो तुं अेक धनी.
अब० १
तुम बिनु कोउ चित्त न सुहावे, आवे कोडी गुनी,
मेरो मन तुज उपर रसियो, अलि जिम कमल बनी.
अब० २
तुम नामे सवि संकट चूरे, नागराज घरनी;
नाम जपुं निशि वासर तेरो, अे शुभ मुज करनी.
अब० ३
कोपानल उपजावत दुर्जन, मथन वचन अरनी,
नाम जपुं जलधार तिहां तुज, धारुं दुःख हरनी.
अब० ४
मिथ्यामति बहु जन हे जगमें, पद न धरत घरनी;
उनको अब तुज भक्ति प्रभावे, भय नहि अेक कनी.
अब० ५
सज्जन नयन सुधारस-अंजन, दुरजन रवि भरनी;
तुज मूरति निरखे सो पावे, सुख जस लील घनी.
अब० ६