शासननी रक्षा छे प्यारी, शासननी शोभा न्यारी,
शासननी आणा धारी, शासननी जाउं बलीहारी….(१)
देव-गुरुना शरणे जईने रहेवुं,
केवलीना कह्या बस धर्म प्रवाहे वहेवुं,
मंडन हो, वज्जर थईने आपत्तिने चूरवानी,
मंडन हो, नीडर थईने ज्योतिने पुरवानी..
शासननी रक्षा छे प्यारी, शासननी शोभा न्यारी,
शासननी आणा धारी, शासननी जाउं बलीहारी…(२)
तीर्थोनी रक्षानी लडाई अमने फावी छे,
चाणक्य नीतिनी चर्चा तो अमने भावी छे,
जोखमनी सामे झूजवुं, एवी तो शासन भक्ति छे,
ना झुकवुं ना मूकवुं, शासनने सोंपी भक्ति छे,
पणया वीरा महावीहिं, ए तो अमारो मंत्र छे,
शिवमस्तुं सर्व सृष्टिनुं, सूत्रे अमारुं तंत्र छे,
मंडन हो….(३)
झंझावातो प्रचंड आवी पडे, ज्ञाननो दीवो जगमगातो रहे,
घनघोर घढ़ा हो के आंधी ऊठे, ज्ञाननो सूर्य चमचमातो रहे,
मंडन हो…(४)
श्रमणोनी सेवानी लगनी हैये लागी,
श्रमणीनी रक्षानी बुद्धि हवे जागी,
महावीरना शासननी मोधी मूडी,
भावना ए हैये ऊंडी ऊंडी रुडी..(५)
हो, जैनोना उत्कर्ष, सर्वस्व स्वाहा करवुं छे,
आतमना ओवारे, सहु साथ-साथ करवुं छे,
कोई स्वप्नना ना तूठे, कोई आशा ना तूठे,
चाहिये जेने दिलथी, एनी हाम ना खूटे,
मंडन हो…(६)
चाले छे जे सतनी लडाई, दुनिया मारी एमां पडघाई,
जो आ जमीन.. शासन शासन, जो आ आकाश.. शासन शासन,
जो आ हवा.. शासन शासन, जो आ प्रकाश.. शासन शासन,
दर दिवसेने दर राते ने, दर क्षणमां गुंज गाजी,
अमे जीतीशुं, अमे जीतीशुं, अमे जीतीशुं दर बाजी,
शासननी रक्षा छे प्यारी, शासननी शोभा न्यारी,
शासननी आणा धारी, शासननी जाउं बलीहारी…(७)