अम्बर से धरती तक एक ही कहानि,
धजा देखने दादाकी आंखे है दीपानि,
जन-जन का देखो रे मन हुआ बहावरा,
जन-जन के अंतरमें गुंजे ये नारा,
सिद्धगिरि के राजा की आई सालगिरा…(१)
अरिहंतो का ऐश्वर्य गाति, शिखरे धजा लहराति,
श्वेत लाल दो रंगी धजा ये, भावोल्लास को जगाति,
शाश्वतगिरि पे लहेराति धजा, शाश्वत धाम ले जाये,
आओ मिलकर गिरिवर पे, दादाकी धजा लहेराये,
पांचसोवी धजा की लहर में, झूम उठा है जग सारा…(२)
वस्तुपाल की शिला को, कर्माशाने किया मूर्तिमंत,
विद्यामंडन सूरिजीने दादा को किया प्राणवंत,
सात साँस लेके जीवंत हुये आदि,
सात साल सात साल अब तो पंचशताब्धि के बाकि
महासुवर्ण महोत्सव के लीये गाओ रे शासनविरा…(३)
स्नेह संप शांति शौर्य का संदेशा लाइ है धजा,
भारत वर्ष का गौरव है सिद्धगिरि के राजा की धजा,
वंदन है वो आंखो को जो देखेंगे दादाकी धजा,
भारत वर्ष का गौरव है सिद्धगिरि के राजा की धजा,
सिद्धगिरि के राजा की आई सालगिरा…(४)