प्रभु मिलननी एक ज ईच्छा, पुरी थाये मारी रे,
पल पल समरुं तुजने प्रभुवर, तारी मारी यारी रे… [१]
परमनी प्रीत प्राप्त करवा, प्रभु तारा पंथे चालुं हुं,
ज्ञाननी रीत मेळववा माटे, प्रभु तारो हाथ झालु हुं,
रोमे रोमे प्रगटे प्रभुवर, अनुपम भक्ति मारी रे… [२]
तारा मिलननो अनहर आनंद, अंतरमां उछळे तरंग रे,
सुखदायी छे प्रभु तारो संग, सागरमां उछळे तरंग रे,
मिलननी पळो क्यारे खुटे नहीं, याद आवे तारी रे… [३]
तारुं स्मित तारी आंखो, चित्तमां सहाय रमती रे,
“राजेन्द्र शेखर” नी प्रभु प्रीत एवी, चित्तने सदाय गमती रे,
तारा मिलननी हर कोई पळो, “हर्ष”ने खूब प्यारी रे… [४]