जिनशासन प्यारुं ने मंगलकारी छे,
संघयात्रा भवोभवने मिठावनारी छे,
पुण्यनो अनुबंध थाये, एवो महासंघ छे,
आ महासंघ छे, छ’रिपालंतो संघ छे…(१)
ज्यां जिनआणानुं पल-पल पालन,
आतमने मनभावन रे,
सूरिखरो ने मुनिवरोना संगे,
छ’रि पाळवी पावन रे,
निर्दोष ग्राम्य संस्कृतिनो नजारो,
निहाळवानो ल्हावो रे,
सात क्षेत्रोनी अनुपम भक्तिथी,
भव्यभूमिओ वधावो रे,
गिरनार ने गिरिराजे महासंघमाळ छे,
सिद्धोनी भूमिंनुं शाश्वत प्रमाण छे,
पुण्यनो अनुबंध थाये,
एलो महासंघ छे…
आ महासंघ छे, छ’रिपालंतो संघ छे…(२)
अर्थ शंत्रुंजय एवा जामनगरना,
जिनालय जुहारीने,
पा पा पगले डगला भरशुं,
पुण्य भूमिओ वधावीने,
शत्रुंजयनी पांच टुंकनी यात्रा,
ए रैवत ने कदंबगिरी,
तालध्वजने हस्तगिरी भेटीने,
संगे जईए सिद्धगिरी,
प्राचीन तीर्थोने बार गाउ यात्रा छे,
नमि-नेमि-आदिनी महासंघ यात्रा छे,
ईतिहासे “अंकित” थाये,
एवो महासंघ छे…
एवो आ महासंघ छे,
छ’रिपालंतो संघ छे…(३)