आतमने पावन करवा,
आवी छे परम घडी,
निरंतर निजमां रमवा,
तोडवी आजे भवोनी कडी,
संसार विसारी संयम लेवा,
मांगुं हुं प्रभु शरणम्,
मंगल जीवनमां मंगल प्रभाते,
चाहुं हुं गुरु चरणम्,
श्रामण्यम् अहो श्रामण्यम्…(१)
वैराग्य वर्मसन्नद्धा,
वीरा विरति लिप्सवः ।
अहो! श्रामण्य नादेन,
गुंजयन्ति वसुन्धराम् ॥ (२)
दोरंगी दुनियानी केवी,
अवनवी छे वातो,
गुरुमाना हितवचने छोडुं,
हुं संसारनो नातो,
साची दिशामां गाळुं हुं,
साचा सुखनी रातो,
नाचीझुमी ओघो लेवा,
मनमांहे हरखातो,
‘सुग्गहियं करेह’ ना सुनादे,
हवे मळजो रे रजोहरणम्,
श्रामण्यम् अहो श्रामण्यम्… (३)
सुंदर मजानो वेष सजीने,
नीचा नयणे विहरूं,
आगम खजानो भणवाने हुं,
प्रभुना वयणे विचरूं,
गुरुराज मुज सथवारो ने,
श्रमणोनो संग प्यारो,
त्याग ने विरागमां मारो,
आतम रहे एकधारो,
शिवसुखने “अंकित” करवाने,
हवे ढळजो रे भवभ्रमणम्,
श्रामण्यम् अहो श्रामण्यम्… (४)