पंचम शिखरे, गिरिराजना,
बेठी मोरली, गुणलां गाती….
अंजन वरणी, नेमिनाथनी,
मूर्ति शोभती, त्यां मलकाती… (१)
जे रागीने वितरागी बनावे,
तेना चाहुं स्पर्शने,
गिरनारे जवानी होंश मने….
जे साधकने पण सिद्ध बनावे,
तेना चाहुं स्पर्शने,
गिरनारे जवानी होंश मने… (२)
नवभव केरी छे सन्नारी,
एवी तारी राजुलनारी,
हवे आवे मारी वारी हे प्रभु!
घेली-घेली मारी वातो,
सांभळी जो तुं मलकातो,
शा माटे हुं अटवातो ए पूछुं!
तारा विरहनी रातडी,
भींजवी दे मारी आंखडी,
मळवाने दई दे हवे पांखडी,
तारुं ने मारुं मिलन करावे,
एवो दई दे मंत्र मने,
गिरनारे जवानी होंश मने…. (३)
पवित्र गजपद कुंडना पाणी,
एतो तारा स्पर्शने जाणी,
भुली पडे स्वर्गनी इंद्राणी,
वनराजी ए नांख्या डेरा,
महेंकी उंठे तारा दहेरा,
भले होय सांज संवेरा,
उर्जामय छे त्यांनी धरती,
भक्तोना भावनी थाय भरती,
अंबाई देवी रक्षा करती,
तारा शौर्यनी गाथा गातुं,
एवो अद्भुत पंथ ए.
गिरनारे जवानी होंश मने… (४)
सूर अने ईंद्र करे छे सेवा,
राम थई बेठो तुं देवा,
हुं हठीलो छुं तुजने भेटवा,
जगत शोधे छे यशने कीर्ति,
तुं करीदे अखंड प्रीति,
जेथी टळे भव-भवनी भिती,
तारी मुस्कान बने मारुं गान,
जोई तुजने हुं भूलुं मारी शान,
आपी दे चरणोमां स्थान मने,
जीरावलाना भक्तो अमे,
लाव्या कुवालाथी संघने,
गिरनारे जवानी होंश मने… (५)