ॐ पंचाचार प्रवर्तकं
ॐ छत्रीसगुणधारकं
ॐ सुरिमंत्राराधकं
ॐ जिनशासन सुरक्षकं
वीरना वारसदार एवा,
सूरिभगवंतने वंदनम्…
गौतमना अवतार एवा,
सूरिभगवंतने वंदनम्…
सूरिभगवंतने वंदनम्…
सूरिभगवंतने वंदनम्… (१)
जिनशासननां आभमां,
झळहळे जे सूर्य बनी,
अनुभवे संघ पण,
नाथ मळ्यानी लागणी,
डगले डगले जे प्रसरावे,
पंचाचारनी दिव्यध्वनी,
जिनवाणीना नादथी,
गजावे छे अंबर अवनी,
छत्र बनीने संघनुं,
क्षेम करे आजीवनम्,
वीरना वारसदार एवा,
सूरिभगवंतने वंदनम्…
सूरिभगवंतने वंदनम्…
सूरिभगवंतने वंदनम्….. (२)
तीर्थंकर समान सूरि,
जिनशासन शिरताज छे,
प्रचंडपुण्य निधान सूरि,
हर्ष-दौलत गुरुराज छे,
धर्मतीर्थना महारथी,
संघ तीरथनी लाज छे,
सिद्धिपथना सारथी,
तारणतरण जहाज छे,
कलिकाळमां वर्तावे,
जयवंतु जिनशासनम्,
गौतमना अवतार एवा,
सूरिभगवंतने वंदनम्…
सूरिभगवंतने वंदनम्…
सूरिभगवंतने वंदनम्… (३)
संघ स्थवीर संयम मेरू महोत्सवे,
तिथ्यर समो सूरि पद प्रदानम्,
शुभम् करो तुः जयम् करो तुः
भद्रम् करो तुः शिवम् करो तुः (४)