महापर्व यह आया है,
अन्तर शुद्धि कर ले।
संदेश यह लाया है,
मन मैल को अब हर ले ॥ टेक ॥
यह जीव अनादि से,
जग में भटकता है।
रागादि भावों से,
बन्धन से अटकता है।
मिला योग मानव भव का,
बस श्रेष्ठ भक्ति वर ले ॥१॥
यह पर्व महासुखकर,
संदेश ले आया है।
कषायिक भाव मिटे,
यह गीत सुनाया है।
सब वैर विरोध मिटा,
शान्ति पथ पग घर ले ॥२॥
अब क्षमा भाव उर-धर,
शत्रु से प्रेम करे।
द्वेष घृणा कालुष,
मन सब दूर करे।
बहे प्रेम धारा जग में,
अमृत ऐसा भर ले ॥३॥
महापर्व पर्युषण ये,
जन-जन को जगाता है।
सब अन्तर द्वन्दों को,
हर मन से भगाता है।
आराधना कर इसकी,
आत्मिक शान्ति वर ले ॥४॥