(तर्ज :- हेलो मैं हारी पिया)
*अस्थाई*
आया पर्युषण प्यारा,
वार्षिक त्यौंहार रे,
धर्म कमाई कर ले,
अवसर मत हार रे।
* अन्तरा*
अवसर साधा वीर प्रभु ने,
कितने-कितने कष्ट सहे,
कील ठोक दी कानों में,
गंभीर वीर नहीं आह कहे,
जग को सत्पथ दिखलाया,
त्रिशला दुलार रे॥१॥
धर्म कमाई करले ॥
सालिभद्र से सेठ धनी
और धनजी जैसे पुरुष महान,
त्याग भोग संयम तप कीना,
तुरंत हुआ उनका कल्याण,
सीता की शील परीक्षा,
अग्नि जलधार रे ॥२॥
धर्म कमाई करले ॥
सेठ सुदर्शन सत पर डट गया,
शूली बनी सिंहासन रे,
दमयन्ति सती सहे कष्ट
और भटक फिरी थी वन-वन रे,
धन-धन सती चन्दनबाला,
हो गई पार रे ॥३॥
धर्म कमाई करले ॥
राग द्वेष को छोड़ आज
सब एक सूत्र में बन्ध जाओ,
संयम तप, जप, सत संगत कर,
वीर प्रभु के गुण गावो,
“वीर मंडल” को प्रभु का,
पल-पल आधार रे ॥४॥
धर्म कमाई करले ॥
सह. रच. : “भँवर”