हमें रखना पनाह में, यह है अरमां हमारा,
यही एक आरज़ू है, रहे बस संग तुम्हारा,
हमें रखना पनाह में….(१)
धरुवंश की बगियां में, खिली है सुन्दर
क्यारी,ज्ञान महक से हुई है, सुरभित
ये सृष्टि सारी,नाम से काम होते,
वचन में सिद्धि अपारी,सत्य का मार्ग
बताकर, कई तकदीर संवारी,जैन अंबर का
ये तो, चमकता अजब सितारा,हमें
रखना पनाह में….(२)
राह भटके थे हम तो, राह में था अंधियारा,
आये राहबर बनके, किया तुमने उजियारा,
वो सब निहाल है की, हैं जिनपर निगाहें,
बक्शी रहमत हम पर, दिखादो मुक्ति की
राहें, सताये डर क्या गम का, गुरुवर
का हो सहारा, हमें रखना पनाह में…(३)
धन्य अवतार इनका, जाये हम भी बलिहारी,
जयंतसेन सूरिखर, अलौकिक तेज भारी,
बड़ी-बड़ी उपामयें भी, गुरु सन्मुख हैं फीकी,
इनमें दमक रही आभा, राज-यतीन्द्रजी की,
साथ पाया “प्रशम” ने, अब है मिला किनारा,
हमें रखना पनाह में…(४)