श्री नवपद शाश्वत ओली आराधना … तृतीय दिवस : आचार्य पद की आराधना… आचार्य पद की आराधना को प्राणवंती बनाने के लिए आचार्य का संक्षिप्त परिचय… आचार्य भगवंत का महत्व जिनशासन में विशेष है, देव तत्व यानि भगवंत की उपस्थिति का समय अति अल्प है, जैसे पच्चास लाख करोड़ सागरोपम के काल में ऋषभदेव भगवान की उपस्थिति केवल एक लाख पूर्व ही रही, उसके बाद शासन की धुरा आचार्य भगवंतों ने की। यहां महिमा गुणों के धारण करने से होती है, आचार्य भगवंत वेश के साथ साधु के पांचों आचारों का विधिवत् पालन करते हुए, सत्यमार्ग की प्ररुपणा करते हो, छत्तीस गुणों से युक्त हो, अप्रमत्तता पूर्वक धर्मोपदेश देते हो, सातों विकथा से दूर हो, कषाय की परणीति से मुक्त हो, अमायावी, कलुष्यता से कोषो दूर हो, निर्दोष चारित्र हो, जो अपनी निश्रा में रह रहे साधु-साध्वी को सारणा, वारणा, चोयणा और पडीचोयणा के द्वारा संयम में स्थिर रखते हो। केवलज्ञानीयों की अनुपस्थिति में श्री संघ सम्पूर्ण विश्व की आत्माओं के आत्मिक कार्य सिद्ध करवाते हो…ऐसे आचार्य भगवंत वंदनीय नमनीय है, शास्त्रों में कहा है…सूरी नमुं ते जोहे रे। आचार्य भगवंत तो वे ही है जिनके हट्दय में जिनाज्ञा का पालन हो, उनका आचरण, वाणी सदा जिनाज्ञा को दर्शाती हो। उनको देह, यशकीर्ति, शिष्य परिवार का मोह नही हो, सम्पूर्ण रूप से जिनाज्ञा को समर्पित हो। जिनवाणीसार : राग-द्वेष से रहित होकर वीतराग भाव से जो आराधना की जाती है, वह अवश्य ही क्रमश पुनः जिनशासन, स्वर्ग, मोक्ष सुख प्रदान करते हुए परमात्मा भी बनाती है।
तृतीय दिवस : श्री आचार्य पद आराधना
( रंग – पीला ) काउसग्ग 36 लोगस्स
प्रदिक्षणा – 36, खमासमणा – 36
स्वस्तिक – 36, आयम्बिल : चने की दाल का
नवकारवाली – 20 नमो आयरियाणं
ओली श्रृंखला 3 रा पद ” आचार्य ”
प्रश्न 1. : नमस्कार मंत्र का तीसरा पद कौनसा है ?
उ. 1. :. णमो आयरियाणं
प्रश्न 2 – आचार्य का क्या स्वरूप है?
उ. 2. : जो संघ के नायक होते हैं शिष्यों को शिक्षा दीक्षा प्रायश्चित आदि देते हैं। तथा जिनके छत्तिस मूल गुण होते हैं वे आचार्य कहलाते हैं।
प्रश्न 3 – आचार किसे कहते हैं?
उ. 3. : – धार्मिक नियमों को आगम के अनुसार स्वयं पालन करना तथा अन्य (शिष्यों) से पालन करवाना आचार कहलाता है।
प्रश्न 4. : आचार कितने है व कौन कौन से ?
उ. 4. :. पांच आचार है |
1) ज्ञानाचार, 2) दर्शनाचार, 3) चारित्राचार, 4) तपाचार, 5) विर्याचार |
प्रश्न. 5. : इन पांचों को एक ही शब्द में क्या कहते हैं?
उ. 5. : इन पांचों को एक ही शब्द में पंचाचार कहते हैं।
प्रश्न. 6 : द्वादशांगी रूप शास्त्रों को आचार्य कितने दोषों से रहित पठन-पाठन करवाते है ?
उ. 6. :. 8 दोषों रहित |
प्रश्न. 7 : ज्ञानाचार के कितने आचार है व कौन कौन से ?
उ. 7. : 8 ( आठ ) काल, विनय, बहुमान, उपधान, अनिन्हव, व्यंजन, अर्थ, तदुभयं |
प्रश्न. 8. : दर्शनाचार के 8 भेद कौन कौन से है ?
उ. 8. :. निशंकित, निःकांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपवृहन, स्थिरीकरण, वात्सल्य, प्रभावना |
प्रश्न. 9. : चारित्राचार के कितने भेद है व कौन कौन से ?
उ. 9. :. 8 ( आठ ) — 5 समिति + 3 गुप्ति |
प्रश्न. 10. : आचार्य आदि कितने दोषों से रहित शय्या आदि वस्तु का उपभोग करें ?
उ. 10. :. 96 दोषों से रहित |
प्रश्न. 11. : समिति व गुप्ति का दूसरा नाम क्या है ?
उ. 11. :. प्रवृत्ति एवं निवृत्ति |
प्रश्न. 12. : तपाचर के 12 भेद कौन कौन से है ?
उ. 12. :. 1) अनशन, 2) उनोदरि, 3) भिक्षाचर्या, 4) रस परित्याग, 5) कायक्लेश, 6) प्रतिसंलिनता, 7) प्रायश्चित, 8) विनय, 9) वैयावृत्त्य, 10) सवाधयाय, 11) ध्यान, 12) कार्योत्सर्ग |
प्रश्न. 13. : आचार्य किसमें प्रवृत्ति करते है व कौन कौन से ?
उ. 13. :. पांच प्रकार के व्यवहार में | 1) आगम व्यवहार, 2) सूत्र व्यवहार, 3) आज्ञा व्यवहार, 4) धारणा व्यवहार, 5) जीव व्यवहार |
प्रश्न. 14. : आचार्य कितनी इन्द्रियों का निग्रह करते है व किन विषयों पर ब्रेक लगाते है ?
उ. 14. :. पांच | ( 23 विषयों पर )
प्रश्न. 15. : विषय राग से क्या बढ़ता है व विषय विराग से क्या घटता है ?
उ. 15. :. भवभ्रमण और जन्म-मरण |
प्रश्न. 16. : ब्रह्मचर्य की वाड़ें कितनी व क्यों लगाईं जाती है ?
उ. 16. :. 9 ( नौ ) व्रत की रक्षा के लिए |
प्रश्न. 17. : ब्रह्मचर्य की नौ वाड़ें कौन कौन सी है ?
उ. 17. :. 1) स्त्री, पशु, पंडक रहित मकान, 2) मनोरम स्त्री कथा वर्णन, 3) स्त्री परिचय त्याग, 4) स्त्रियों के अंगोपांग नहीं देखना, 5) स्त्रियों के विकारोत्पादक शब्द, गीत आदि नहीं सुनना, 6) भोगे हुए भोगों का विस्मरण, 7) काम वर्धक भोजन का त्याग, 8) अधिक भोजन त्याग, 9) शरीर श्रृंगार वर्जन |
ये 9 वाड़ें ब्रह्मचर्य की है |
प्रश्न. 18. : कषाय किसे कहते है व कौन कौन सी है ?
उ.18. :. जिससे संसार की वृद्धि हो, जो कर्म बंध का प्रधान कारण है | वह कषाय है | 1) क्रोध, 2) मान, 3) माया, 4) लोभ |
प्रश्न. 19. : चारों कशायें कहाँ रहती है ?
उ. 19. : क्रोध का निवास कपाल में, मान का निवास गर्दन में, माया का निवास पेट में, लोभ का निवास रोम रोम में रहता है |
प्रश्न. 20. : चारों कषायों को किस किस की उपमा दी गई है ?
उ. 20. : क्रोध को – घी की, मान को – अजगर की, माया को – जाल की, लोभ को सर्प की उपमा दी गयी है |
प्रश्न. 21. : आचार्य कितनी कषायों पर विजय पाने का पुरुषार्थ करते है ?
उ. 21. :. चारों कषायों पर |
प्रश्न. 22. : प्रकारान्तर से आचार्य के 36 गुण कौनसे है ?
उ. 22. :. 1) जाती संपन्न, 2) कुल संपन्न, 3) बाल संपन्न, 4) रूप संपन्न, 5) विनय संपन्न, 6) ज्ञान संपन्न, 7) शुद्ध श्रद्धा संपन्न, 8) चारित्रवाण, 9) लज्जाशील, 10) लाघव संपन्न, 11) ओजस्वी, 12) तेजस्वी, 13) वर्चस्वी, 14) यशस्वी, 15) जीतक्रोध, 16) जीतमान, 17) जीतमाया, 18) जीतलोभ, 19) जितेन्द्रिय, 20) जीतनिन्दा, 21) जीतपरिषह, 22) जीविताशा मरण भय विप्रमुक्त, 23) व्रतप्रधान, 24) गुणप्रधान, 25) करणप्रधान, 26) चरण प्रधान, 27) निग्रह प्रधान, 28) निश्चय प्रधान, 29) विद्या प्रधान, 30) मंत्र प्रधान, 31) वेड प्रधान, 32) ब्रह्म प्रधान, 33) नय प्रधान, 34) नियम प्रधान, 35) सत्य प्रधान, 36) शौच प्रधान |
प्रश्न. 23. : आचार्य की कितनी सम्पदा होती है ?
उ. 23. :. 8 ( आठ )
प्रश्न. 24. : पहली सम्पदा का क्या नाम है ?
उ. 24. :. आचार सम्पदा |
प्रश्न. 25. : आचार सम्पदा के चार भेद कौनसे है ?
उ. 25. :. 1) संयम क्रियाओं में सदा उपयुक्त रहना – संयम ध्रुवयोग युक्ता | 2) अहंकार रहित होना – असंप्रगृहितात्मा, 3) एक स्थान पर स्थित होकर नहीं रहना – अनियतवृत्तिता, 4) वृद्धों के समान गंभीर स्वभाव वाला होना – वृद्धशीलता |
प्रश्न. 26. : दूसरी सम्पदा का नाम क्या है व किसे कहते है ?
उ. 26. :. श्रुत सम्पदा | अंग उपांग सूत्रों का अर्थ तदुभय का ज्ञान होना ?
प्रश्न. 27. : सूत्र सम्पदा क्या है ?
उ. 27. :. शास्त्रों के अर्थ परमार्थ का ज्ञाता होना |
प्रश्न. 28. : श्रुत सम्पदा के चार भेद कौन से है ?
उ. 28. :. 1) अनेक शास्त्रों का ज्ञाता होना – युग प्रधानता – बहुश्रतता है, 2) सूत्रार्थ से भलीभांति परिचित होना – आगम परिचितता – परिचितश्रुतता है, 3) स्वसमय और परसमय का ज्ञाता होना – विचित्र श्रुतता है, 4) शुद्ध उच्चारण करने वाला होना – घोष विशुद्धि कारकता है |
प्र्शन. 29. : आचार्य श्रुत ज्ञान के द्वारा कितना क्षेत्र जान सकते है ?
उ. 29. :. सम्पूर्ण क्षेत्र को आगम वाणी के उपभोग से देख सकते है |
प्रश्न. 30. : केवलज्ञान होने पर आचार्य कौनसे पद के अधिकारी बन जाते है ?
उ. 30. :. अरिहंत पद के |
प्रश्न. 31. :. किस इन्द्रिय से वशीभूत होकर कौनसे जीव अपने प्राण गवांते है ?
उ. 31. :. 1) श्रोतेन्द्रिय के वशीभूत होकर मृग, सर्प
2) चक्षुइंद्रिय के वशीभूत होकर पतंगा
3) घ्राणेंद्रिय के वशीभूत होकर भ्रमर
4) रसनेंद्रिय के वशीभूत होकर मछली
5) स्पर्शनेंद्रिय के वशीभूत होकर हाथी
प्रश्न.32. :. कौनसे व्यक्ति शिक्षा योग्य नहीं होते ?
उ. 32. :. 1) अभिमानी, 2) क्रोधी, 3) प्रमादी, 4) रोगी, 5) आलसी . ये पांच प्रकार के शिष्य शास्त्र वाचना लेने के योग्य अधिकारी नहीं होते है | ये शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते है |
प्रश्न. 33. :. वाचना कितने व कौनसे कारणों से दी जाती हैं ?
उ. 33. :. 5 कारणों से दी जाती है :- 1) संग्रह के लिए, 2) उपग्रह के लिए, 3) निर्जरा के लिए, 4) वाचना देने से मेरा श्रुत ज्ञान होगा, 5) श्रुत के पठन पाठन की परम्परा अविच्छिन रखने के लिए |
प्रश्न. 34. :. शिक्षा शील के 8 गुण कौनसे ?
उ. 34. : 1) जो अधिक हँसता ना हो
2) सदा इन्द्रिय दमन में लीन हो
3) मर्मकारी वचन ना बोलता हो
4) शील रहित ना हो
5) कुस्सीत-दुषितशील वाला भी ना हो
6) रसनेंद्रिय का अति-लोलुप ना हो
7) क्रोध पर निग्रह हो
8) सत्य से प्रीति रखता हो
वाही व्यक्ति शिक्षा का अधिकारी बन सकता है |
प्रश्न. 35. : वाचना किसको दी जाती है, उनके गुण कौन कौन से है ?
उ. 35. : 3 गुणों के धारण करने वाले को वाचना दी जाती है | अदृष्ट, अमूढ़, अव्युद्ग्राहित = कलहप्रिय ना हो |
SHRI NAV PAD OLI
TRUTIYA DIN
AACHARYA PAD KO NAMAN
Tirthankar na ho tabhi aachaya sangh k pratinidhi hai. Jin prabhu ki vaani ko sab tak sahi arth main pahochane ka kaam aacharya ka hai. Aacharya mahan guru hai.
Sidhha parmatma ne hum sab ko nigod se bahar nikala. Arihant parmatma ne hum sab ko dharma ka marg dikhaya. Hum sab logo ne arihant aur sidhh ko ye janam main dekha nahi hai lekin karib 2500 varsh pehle prabhu veer ne jo shashan ki sthapna ki us ko abhi tak chalane main kisi ka mahatva ka yogdaan hai to wo aacharya ka hai.
Panch parmeshthi i.e. arihant, sidhh, aacharya, upadhyay, sadhu main aacharya ka sthan ekdum beech main hai. Jaise ki koi amulya haar k beech main ati mulyawan pandent.
Aacharya pad ka rang hai peela. Peela rang suvarna (gold) jaisa hai. Aacharya suvarna ki tarah khud ki kranti har jagah felate hai aur dusre jiv k andhkarmay jivan ko prakashit karte hai.
Nav pad main se koi bhi ek pad ki aaradhna bhi moksh dila sakti hai. Navkar ki ek sab se baddi khas baat hai k navkar kisi ek vyakti k liye nahi hai lekin wo gun ki vandana hai.
Namo aayriyanam ka matlab ye nahi hota k kisi ek aacharya ko vandan kiya lekin namo aayriyanam ka matlab hai sabhi aacharya ko vandana.
Iss kaal main jab tirthankar hum sab k saath nahi hai tabhi aachrya dev tirthankar saman hote hai.
Gacchachar payana naam k granth main likha hai k “tithhyar samo suri”
Matlab suri (aacharya) tirthankar saman hai
Apne jain shashan main anek vidyaan aacharya hue hai.
Kumudchandra suri ma. sa. Ka anokha tap: 92 aymbil oli aur har oli k paarne main maskhaman (wo oli ka paarna maskhaman k pachkaan se karte) Dhanya ho aise aacharya.
Jaha hum ek upwas bhi karte hai toh pure din main ek baar toh ye khayal aa jata hai k kal paarna iss cheej se karnge..
Aise main oli ka paarna koi khane ki cheej se nahi par maskhaman (30 upwas) k pachhkaan se karne wale aacharya ko koti koti vandana.. wo bhi ek ya do baar nahi lekin 92 baar…..
Shashtra main kaha gaya hai k koi sangh agar koi achha bhi kaam aacharya ko puche bina kare to uss main saath nahi dena chahiye.
Jab hum samayik bhi karte hai to saamne sthapnacharya (sthapna ji) rakhte hai. Samayik jaisi kriya bhi aacharya ki aagya k bina nahi hoti hai.
Aacharya k 4 prakaar dikhaye gaye hai.
1. Naam aacharya: jis ka sirf naam hi aacharya ho.
2. Sthapna aacharya: aacharya ki murti ya sthapna ji ko sthapna aacharya kehte hai.
3. Dravy aacharya: jo puri duniya k tarah tarah k vishay ka gyan de. E.g. school teacher
4. Bhaav aacharya: ye aacharya jain shashan main hote hai. Ye bhaav aacharya 5 aachar ka khud palan karte hai aur dusro se bhi karwate hai.
1. Gyanachar (gyan + aachar): khud gyan prapt karte hai aur dusro ko bhi dete hai. Gyan prapt karne k liye 8 cheej dhyan main rakhte hai.
A) kaal ka dhyaan rakhte hai. Sahi samay pe gyan prapt karte hai.
B) vinay karte hai.
C) guru ka bahuman karte hai.
D) updhaan karte hai.
E) guru samarpit hote hai.
F) sutra ki shuddhi karte hai.
G) sutra k arth main shuddhi ka palan karte hai.
H) sutra aur arth dono ka swikar karte hai aur jin shashan main kabhi shanka nahi karte.
2. Darshanachar
Samyag darshan main shradhha hoti hai. Anya dharma k liye aakarshan nahi hota. Ye bhi sach aur wo bhi sach aisi asthirta nahi hoti. Satkaryo ki anumodna karte hai. Chaturvidh sangh k liye maan sanmaan hota hai. Hraday main vatsalya hota hai. Khud to shradhha wale hote hai lekin dusro ko bhi shradhha dilawate hai. Har aatma ko nirmal aur pavitra banate hai.
3. Charitrachar: charitra ka palan karte hai.
4. Tapachar: aacharya bahya aur abhyantar aise prakaar k tap karte hai.
Anshan, unodari (jarur se kam khana) vruti sankshep, ras tyag, kaayakalesh (sharir ko kasht dena) prayashchit, dhyaan, vaiyavach, vinay, karyotsag aur swadhyay jaise tap main aacharya hamesha aage hote hai.
5. Viryachar: gyan darshan charitra aur tap ye char aachar main kabhi aalas nahi karte hai
Aise toh aachrya bhagwant k 8 lakshan dikhaye hai.
1. Paanch aachar palna
2. Chaturvidh sangh ki achhe se jimmedari nibhani
3. Chaturvidh sangh ko kushal mangal rakhna
4. Shrut gyan k param upasak. Gyan se jin shashan ki shaan badhate hai.
5. Aacharya patthar main kamal khila sake aise hone chahiye. Matlab agar koi kam budhhi ya to jad budhhi wala bhi ho to pyar se samja k us ko gyani banate hai.
6. Updesh dena. Aacharya hamesha dharma ka updesh dete hai. Aacharya ko patta hota hai k kon sa jiv kaise updesh samjega.
7. Bhasha gyan hota hai. Aacharya jaha jis pradesh main jate hai waha ki bhasha ka gyan hota hai (generally). Iss wajah se logo ko updesh samajne main saralta hoti hai.
8. Aacharya khub prabhav shali hote hai.
nav pad ji ki oli k tisre din aise maha gunwan aur anek lakshan se yukt, hum sab k liye tirthankar saman aise AACHARYA PAD KO KOTI KOTI VANDAN
BHUL CHUK MICHHAMI DUKKDAM
💢Namo Ayariyanam…
〰〰〰〰〰〰〰
Acharyo Chhe Jindharm Na Dax Vyapari Sura…!
Jin Shasan Na Raja…!
36 Guno Thi Yukt…!
Vartman Tirthadhipati Prabhu Veer Na Shasan Ne 21000 Varsh Chalavnara…!
Chaturvidh Sangh Na Agrani…!
Duniya Na Khune Khune Prabhu Veer Na Vachano Ne Saraltathi Pahochadnara…!
Je Dev Pan Chhe…”Titthyar Samo Suri”….!
Je Guru Pan Chhe… Tethi J Panch Parmeshthi Ma Vachala Sthane Pamela…!
Jinvar Kathit Ane Gandhar Rachit Sutrarthna Sampurna Jankar….!
Apna Agnan Ne Kadhava Gnanachar… Apni Jadtane Kadhva Darshnachar… Apni Dukh Samadhi Kadhava Charitrachar… Apni Khau-Khau Ni Kutev Kadhava Tapachar… Ane Apna Haram Hadka Pana Ne Kadhava Viryachar… A Panch Achar Pale Ane Palave….!
Prabhavakta Dwara Jiv Ne Shiv-Khuni Ne Muni-Murakh Ne Maha Vidhwan-Shetan Ne Bhagwan Banavnara… !
Achary Bhagwanto Ne Koti Koti Vandana…!
Achary Pad No Ayambil No Trijo Divas Mangal May Ho…!
Aacharya
➖➖➖➖
01:- Aacharay Bhagwanto No Vishist Gun Kayo Chhe? Aacharpalan
02:- Aacharay Bhagwant Na Shire Sheni Chinta Hoy? Shasan
03:- Kaya Sutra Ma Aacharya Na Gun Batavya Chhe? Panchidiy
04:- Aacharaya Pad Ni Aaradhna Ma Ketla Sathiya Karay? 36
05:- Kalikal Sarvghna Tarike Kaya MS Olkhata? Hemchandrasuriji MS
06:- Roj Ni 1000 Gatha Kaya MS Gokhta? Bappbhattsuriji MS
07:- “Savai Hirla “ Nu Birud Kaya MS Ne Malyo? Sensuriji MS
08:- “Jagad Guru “ Tarike Ni Khyati Kaya MS Ne Mali? Hirsuriji MS
09:- 1444 Granth Na Rachiyata MS? Haribhadrasuriji MS
10:- Sidchhakra Yantra No Udhar Kaya MS Ae Karavyo? Munichandrasuriji MS
11:- Kaya MS Pase Taav Utarvano Mantra Hato? Mandevsuriji MS
12:- Bhaktamar Stotra Na Rachiyata MS? Mantungsuriji MS
13:- Bhagwan Ni Gerhajri Ma Aacharya MS Shena Saman? Tirthankar
14:- Ratnakar Pachishi Ni Rachna Karnar? Ratanakarsuriji MS
15:- Kutch Wagad Desho Dvarak MS? Kanaksuriji MS
16:- Aadhyatm Yogi MS? Kalaapurnsuriji MS
17:- Kalyan Mandir Stotra Rachiyata? Sidhsen Divakarsuriji MS