श्री नवपद ओली का द्वित्तीय दिवस, सिद्ध भगवन की आराधना… . श्री नवपद। शाश्वती। ओली आराधना… द्वित्तीय दिवस : सिद्ध प्रभु की आराधना… सिद्ध की आराधना को प्राणवंती बनाने के लिए सिद्ध का संक्षिप्त परिचय… सिद्धशिला नी उपरे होजो मुज वास श्रीकार… आत्मा 8 अष्ट कर्मों से मुक्त होने पर सिद्ध बनती है – ज्ञानावर्णीयकर्म, दर्शनावर्णीयकर्म, वेदनीयकर्म, मोहनीयकर्म, आयुष्यकर्म, नामकर्म, गौतरकर्म, विर्यान्तराय कर्म के क्षय से। जो आत्मा अनंतकाल तक ज्ञान-दर्शन-चारित्र में रमण करती है, आहार संज्ञा से मुक्त होती है। सिद्ध बनने वाला किसी का साथ नही चाहता है, वह तो निर्भीक होकर अपने गंतव्य स्थल की ओर बिना रुके कदम बढ़ाते रहता है। कल नवपद तप की आराधना दूसरा दिन सिद्ध पद की आराधना खमासमणा नो दुहो रूपातीत स्वभाव जे, केवल दंसणनाणी रे । ते ध्याता निज आतमा, होय सिद्ध गुण खाणी रे ।। वीर जिनेश्र्वर उपदिशे, तमे सांभळजो चित लाई रे, आतम ध्याने आतमा, ऋध्धी मले सवी आई रे ।। वणॅ : लाल जाप : ऊॅ ह्री नमो सिद्धाणं आ पदनी वीश नवकार वाली२० सिद्ध पद की गीने. प्रदक्षिणा : ८ साथीया : ८ खमासमणा : ८ काउस्सग्ग : ८
2⃣ द्वित्तीय दिवस : श्री सिद्ध पद आराधना
( रंग – लाल वर्ण ) काउसग्ग 8 लोगग्स
प्रदिक्षणा – 8, खमासमणा – 8
स्वस्तिक – 8, आयम्बिल : गेहूं का
नवकारवाली – 20 नमो सिद्धाणं
सिद्ध
प्रश्न. 1. : नवकार मंत्र का दूसरा पद कौनसा है ?
उ. 1. : णमो सिद्धाणं
प्रश्न. 2. :5 पदों में सबसे अधिक कौन है ?
उ. 2. : सिद्ध
प्रश्न. 3. : सिद्ध किसे कहते है ?
उ. 3. : जिन्होंने 8 कर्मों को नष्ट कर दिया हो
प्रश्न. 4. : सिद्ध भगवान कहा रहते है ?
उ. 4. : लोक के अग्रभाग पर
प्रश्न. 5. सिद्ध क्षेत्र कहा है ?
उ. 5. : सिद्धशिला से लगभग एक यपजं ऊपर
प्रश्न. 6. : सिद्धशिला और लोकांत के बीच कितना अन्तर है ?
उ. 6. 1 योजन का
प्रश्न. 7. :सिद्ध क्षेत्र कितना है ?
उ. 7. 333 धनुष 32 उंगली जितना
प्रश्न. 8. : सिद्ध क्षेत्र की चौड़ाई कितनी ?
उ. 8. : 45 लाख योजन
प्रश्न. 9. : 45 लाख योजन में कितने सिद्ध है ?
उ. 9. : अनंत
प्रश्न. 10. : सिद्ध भगवान कितना विहार करते है ?
उ. 10. : लघभग 7 रज्जु जितना
प्रश्न. 11. : सिद्ध भगवान किससे प्रतिहत है ?
उ. 11. : अलोक से
प्रश्न. 12. : कम से कम कितनी अवगाहना वाले कौन मोक्ष में गए ?
उ. 12. : 2 हाथ की अवगाहना वाले कुरमापुत्र
प्रश्न. 13. : मध्यम सिद्ध अवगाहना कौनसे जीव पा सकते है ?
उ. 13. : 7 हाथ अवगाहना वाले जीव
प्रश्न. 14. : 7 हाथ अवगाहना वाले कौन मोक्ष गए ?
उ. 14. : वीर प्रभु, सुधर्मा स्वामीजी, गौतम गणधर आदि
प्रश्न. 15. : अभी भगवान ऋषभदेव के आत्मप्रदेशों की अवगाहना कितनी है ?
उ. 15. : 333 धनुष्य 32 उंगल
प्रश्न. 16. : सर्वार्थ सिद्धविमान से सिद्धशिला कितनी दूर है ?
उ. 16. 12 योजन
प्रश्न. 17. : कौनसे स्थावर से आकर जीव मनुष्य बनकर मोक्ष जा सकता है ?
उ. 17. : पृथ्वीकाय, अपकाय, वनस्पतिकाय,
प्रश्न. 18. : विकलेन्द्रिय का जीव मरकर मनुष्य बनकर मोक्ष जा सकता है ?
उ. 18. : नहीं जा सकता
प्रश्न. 19. : एक जीव सिद्ध बनता है तब क्या होता है ?
उ. 19. : अव्यवहार राशी का 1 जीव व्यवहार राशी में आता है . ( निगोद से बाहर आना )
प्रश्न. 20. : अभी कहा से जीव सिद्ध बन सकते है ?
उ. 20. : 5 महाविदेह से
प्रश्न. 21. : महाविदेह में अभी कौनसा काल है ?
उ. 21. : अवस्थित काल
प्रश्न. 22. : कृत नपुसंक मोक्ष जाते है या जन्म नपुसंक जाते है ?
उ. 22. : कृत नपुसंक
प्रश्न. 23. : अवस्थित काल का अर्थ क्या होता है ?
उ. 23. : जहाँ वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, आयु, बल, बुद्धि, अवगाहना आदि में विशेष ह्रास व वृद्धि यानी की घटना व बढ़ना ना हो, एक सरीखा सदाबहार व्यवहार चलता रहे .
प्रश्न. 24. : 6ठे आरे में मोक्ष गमन किस अपेक्षा से बताया गया है ?
उ. 24. : अन्य क्षेत्रों के चरम शरीरी जीवों के संहरण ( अपहरण ) की अपेक्षा से .
:प्रश्न. 25. : उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी काल के पहले और दूसरे आरे में कितने जीव बन सकते है?
उ. 25. : प्रति समय 10 जीव
प्रश्न. 26. : जब युगलिक का मोक्ष गमन नहीं होता है तब पहले और दूसरे आरे में मोक्ष गमन किस कारण कहा गया है ?
उ. 26. : महाविदेह क्षेत्र से अपहरण करके लाये हुए चरम शरीरी मनुष्य की अपेक्षा से .
प्रश्न. 27. : कितने स्थानों से निकल हुआ जीव मोक्ष नहीं जा सकता ?
उ. 27. : 8 स्थानों से
5-6-7 = 3 नारकी
तेउकाय , वायुकाय = 2 स्थावर
2 इन्द्रिय, 3इन्द्रिय, 4 इन्द्रिय = 3 विकलेन्द्रिय
3 + 2 + 3 = 8 स्थान
प्रश्न. 28. : कौनसे देवों से देवियाँ , 2 गुना मनुष्य बनकर मोक्ष जा सकती है ?
उ. 28. : ज्योतिष देवियाँ
प्रश्न. 29. : कौनसे स्त्री पुरुष समान संख्या में मनुष्य बनकर मोक्ष जा सकते है ?
उ. 29. : त्रियंच व त्रियंच स्त्री
प्रश्न. 30. : कौनसा नपुंसक संयम लेने के अयोग्य है ?
उ. 30. : जन्म नपुंसक क्योंकि उसका भोग दावानल के समान है
प्रश्न. 31. : कौनसे निर्ग्रन्थ मोक्ष में जाते है ?
उ. 31. : स्नातक निर्ग्रन्थ
प्रश्न. 32. : सिद्ध भगवान कौनसे बंधनों से रहित है ?
उ. 32. : 3 बंधनों से रहित है – जन्म, ज़रा, मृत्यु
प्रश्न. 33. : सिद्ध भगवान अशरीरी क्यों कहलाते है ?
उ. 33. : नाम कर्म के क्षय से शरीर रहित होने के कारण
प्रश्न. 34. : सिद्ध भगवान में प्रभेद गुण कितने है व कौन कौन से ?
उ. 34. : 8 कर्म के क्षय से 31 गुण प्राप्त होते है :-
1) ज्ञानावर्णीय की 5 प्रकृति क्षय करने से – 5 गुण
2) दर्शनावर्णीय की 9 प्रकृति क्षय करने से – 9 गुण
3) वेदनीय की 2 प्रकृति क्षय करने से – 2 गुण
4) मोहनीय की प्रकृति क्षय करने से – 2 गुण
5) आयु की 4 प्रकृति क्षय करने से – 4 गुण
6) नाम की 2 प्रकृति क्षय करने से – 2 गुण
7) गोत्र की 2 प्रकृति क्षय करने से – 2 गुण
8) अन्तराय की 5 पृकृति क्षय करने से – 5 गुण
( 5+9+2+2+4+2+2+5 = 31 )
प्रश्न. 35. : सिद्ध भगवान लोक के बाहर ना जाने के कितने कारण है व कौन कौन से ?
उ. 35. :
1) गति के अभाव से – लोक से आगे इनका गति करने का स्वभाव नहीं होने से
2) निरूपग्रहत से – धर्मास्तिकाय रूप उपग्रह या निमित कारण का अभाव होने से
3) रुक्ष होने से – लोकांत में स्निग्ध पुद्गल भी रुक्ष रूप में हो जाते है जिससे उनका आगे गमन नहीं हो सकता है
4) लोकानुभव से – लोक की स्वभाविकमर्यादा ही ऐसी है जिससे लोकांत से बाहर नहीं जा सकते है
( स्थानांग स्थानग 4 उद्देशक 3 )
प्रश्न. 36. : क्या पंचम काल में भी मनुष्य सिद्ध बन सकते हैं ?
उ. 36. : पंचम काल में कोई भी मनुष्य सिद्ध नहीं बनते हैं, किंतु चतुर्थ काल में जन्म लेकर पंचम काल में मोक्ष जा सकते हैं।
प्रश्न. 37. : क्या सभी मनुष्य सिद्ध बन सकते हैं ?
उ. 37. : केवल आर्यखण्ड में जन्में आर्य मनुष्य सिद्ध बन सकते है ।
प्रश्न. 38. : कौन से जीव सिद्ध हो सकते है ?
उ. 38. : जीवों में केवल मनुष्य ही सिद्ध हो सकते है ।
प्रश्न. 39. : जीवों में केवल मनुष्य ही सिद्ध बनने के अधिकारी क्यों ?
उ. 39. : क्योंकि केवल मनुष्य ही पूर्ण संयम धारण करके सम्पूर्ण कर्मों का नाश करके सिद्ध बन सकते है ।
प्रश्न. 40. : ढाई द्वीप से ही सिद्ध क्यों होते है ?
उ. 40. : क्योंकि ढाई द्वीपों तक ही मनुष्यलोक है। अतः ढाई द्वीप से ही सिद्ध होते है ।
SHRI NAV PAD JI OLI
DWITIYA DIN
SIDDH PAD KI AARADHANA
Sharir aur karma se mukti prapt karne k liye sidhh pad ki aaradhna jaruri hai. Sadhak ko badhak (one who create disturbance) tatv pehchanne ki jarurat hai. Jiv ko apna sudhh swarup pehchanne ki jarur hai.
Bachpan main ek jungle main chhota sa rajkumar reh gaya aur badda ho k aadivasi ki tarah jungle main hi rehne laga. Kisi ne aa k bola k tu aadivasi nahi hai lekin raj kumar hai. Ye sun k us ko apna rajya wapis prapt karne ki ichha huyi. Ab jungle main bhagna aur yaha waha bhatkna bura lagne laga. Antar main sirf apna rajya dikhayi dene laga.
Bas hum sab ki bhi yehi haalat hai. Hum sab sansaar rupi jangal main bhatak rahe hai lekin apna sab ka sachha sthan to hai SIDHH SHILA
14 me ayogi gun sthanak par koi bhi yog nahi hota aur jaha yog nahi waha karma nahi. Jaha spandan hai waha karma hai. Sidhh dasha main karma ka viyog hota hai. Apna jiv aaj tak anant janam le chuka hai. Jo bhog sukh se hum khush ho rahe hai uss main kuch naya nahi hai ye sab to anant baar kar chuke hai. Bhog aur ichhha pe kaabu lana jaruri hai. Tyag main shanti hai.
Garden main laga hua zula ya toh fir taili ka badad (ox) ye sab nirantar (continuous) gati karte hai lekin wapis wohi sthan pe aate hai. Theek issi tarah anant janmo k baad bhi hum jaha the wahi pe hai.
Agar kisi ko doge to divy banoge aur rakhoge to raakh banoge.
Sansaar k jeev siddh banne ka raw material hai. Sidhh banna hai to kisi b jiv pe dwesh nahi karna hai. Har jiv ko naman karne hai. Jitne bhi samkit prapt karne wale aatma hai wo sab pehle kabhi na kabhi mithyatvi hi the. Sidhh pad sashwat hai. Koi bhi cheej kayam nahi hai. Naam hai us ka naash hai lekin sidhh pad shashwat hai. Prime minister ko bhi bhutpurv shabd lag jata hai lekin sidhh ko kabhi bhutpurva sidhh aise nahi kaha jata.
Jis din apne ko sadhana main aanand aayega ya to hum dusro ko shata dena suru karenge wo din maan lena k hum ne sidhh pad ki aur prayaan kar diya hai.
Dusro ko shata dena suru karne se sidhh gati ki aur jane ka raasta khul jata hai. Dusro ko dilasa dena chahiye. Agar hum 4 ya 5 log ghar main shanti se nahi reh sakte to sidhh shila pe anant sidhho k saath kaise reh payenge???
Issi liye sidhh banna hai toh ek baat jaruri hai k sab k saath sneh se rehna hai.
Kisi ko dhan daan dene se to PRASIDHH (famous) hote hai lekin kisi ko shata dene se SIDHH bante hai.
Jo aatma apne saare 8 karmo ka nash karta hai wo sidhh banta hai. sidhh gati k aanand ka varnan karna asambhav hai
Sidhh k sukh ko 3 prakar se varnan kiya gaya hai.
1. Anant
2. Anupam
3. Avyabaadh
Sidhh ka sukh anant hota hai. Ye sukh ka koi ant nahi hai.
Wo sukh anupam hota hai. Us ko kisi upma (comparision) ki jarur nahi hai. Ya toh aise keh sakte hai k us ko kisi ki upma hi nahi de sakte.
Sidhh ka sukh avyabaadh hota hai matlab wo sukh main kisi prakaar ki badha (musibat) nahi aati hai.
Sidhha ko buddh , paarangat, ajar, amar ya to asang aise alag alag naam diye gaye hai.
Buddh: pure vishw ko janne wale
Paarangat: paarangat (expert) matlab jis ko patta chal gaya hai k sansaar main koi saar nahi hai.
Ajar: jara bina k. Jara matlab vrudh awastha. Sidhh bhagwan vrudh nahi hote kyunki un ko sharir hi nahi hota.
Amar: jis ka mrutyu nahi hai wo amar. Sidhh bhagwan ashariri (without body) hote hai is liye un ka mrutyu nahi hota aur wo amar hote hai.
Asang: sidhh bhagwan ko koi karma ka sang nahi hota is liye unko asang kaha gaya hai
Sidhh ko kaise naman karna hai???
Apne hraday (dil) main kamal hai aisi kalpana karo. Kamal jaisa komal hota hai hraday bhi aisa hi chahiye. Kamal nirlep hota hai matlab agar pani ki bund us pe gire to niche gir jati hai. Issi tarah agar hraday pe krodh moh maan maya pade to wo bhi niche gir jane chahiye. Kamal jaise viksit hota hai isi tarah aatma k bhaav bhi khilne chahiye.
Sidhh bhagwan 45 laakh yojan vistrut sidhh shila pe birajmaan hote hai.
Ye sidhh shila bahot hi shwet hoti hai. Nirmal hoti hai, darshaniya hoti hai, shubh hoti hai, aur anant sukh ko dene wali hoti hai.
Aise siddh bhagwan ko ek hi prathana
Hey sidhh bhagwan aap arupi ban gaye aur sidhh gati k swami bane. Aap k paas anupam aur apaar samrudhhi hai. Muje bhi uss main se kuch de do. Har Bhav main aap ka sharan do. Hum sab ko 4 gati se jaldi nikalo. Aap hi hum sab ka bhala karne wale ho.
Day 2, SIDDHA PAD – liberated soul
This is the second post of Navpad and is posted in the top of SIDDHACHAKRA YANTRA. It is also considered as one of the Deva Tatva . Siddha is the supreme power of nature. He is the purest soul in the universe without a physical body. One becomes Siddha after attaining salvation. The Siddha is also a Veetraga and universal observer but does not preach because he does not have any physical body. He lives in perfect equilibrium, eternal peace and joy. He also remains in perfect motionless rest.
A Chhe Sidhdh Amara
Sidhdho Sarve Muktipurina Gami Ne Dhruv Tara…!
Athe Karmo Thi Mukt…!
Janm-Jara-Maran Na Bandhan Thi Chhutela…!
Anant Gnan-Darshan-Charitra-Sukh-Virya Ne Dharan Karnara…!
Anant Guno Na Bhandar…!
14 Rajlok Ni Upar A Lok Na Nake Sidhdhshila Par Birajman…!
Anant Anant Sukh Na Malik…!
Je Kyarey Pachha Sansar Ma Nahi Avnara…!
Sada Anand Ma…Sada Prasanna….Sada Nij Swabhav Ma… Dhruv Na Tara Ni Jem…!
Sansar Ma Dubta Sarve Jivone Adharbhut…!
Tirthankar Bhagwanto Pan Dixa Leta Jeone Namaskar Kare Chhe…!
Eva Anant Anant Namaskar Ho Sidhdh Bhagwanto Ne…!
Sidhdh Pad No Ayambil No Bijo Divas Mangal May Ho…!