Īṭāvā.
Etawah (u. P.) The Station area ikadila īśvarīpurā village includes a farm during the jain religion, about 1200 years old received thousands of rare eagle from gross jain society of Harsha Mahōla.
It is noteworthy that this village is village near āsa’ī; where a decade out broken idols are the most important thing is this village bāsindē these punctuated by worshiping idols you ghan’ya. Yamuna River, situated on the bank of Āsa’ī Village Country of the world is a village can be really belong, where the worship of idols, broken faith in the people of the village a temple pooja archana don’t, but every house in their respected sculptures found homes. Substitute it in idols are not ordinary but th tenth from the mid-century by rute. Rare Stone Sculptures made from this country’s ancient history and culture of the identity.
The Assistant Mahendra Singh said that even them farm so great speaking in broken idols out of the news got it is discussed by district collector by the archaeological department apprised. So bāvata studied there, meanwhile cakaranagara sdm These statues are the responsibility is now this address to begin, that is why the history of these idols.
Jain philosophy according to head office about fifteen km āsa’ī jainism in area the 24th tirthankara bhagwan mahavir swami has nearly two thousand years before, and more time to take the initiation of this place after the sedentary barṣāta cāturmāsa only. This place jain dharmāvalambiyōṁ reverence for the hub was working besides the tenth century jayacandra āsa’ī king has his kannauj upanagarī state developed into and was influenced by jain philosophy king jayacandra has during his regime, the jain religion. All the statues, extricated the rare sandstone built.
ईटावा.
इटावा (उ. प्र.) के इकदिल थाना क्षेत्र के ईश्वरीपुरा गांव में एक खेत की जुताई के दौरान जैन धर्म की लगभग 1200 वर्ष प्राचीन हजारों दुर्लभ प्रतिमाएं प्राप्त होने से सकल जैन समाज में हर्ष का महोल .
गौरतलब है कि इसी गांव के नजदीक है आसई गांव। जहां पर एक दशक से खंडित मूर्तियां निकलती रही हैं। सबसे खास बात तो यह है इस गांव के बासिंदे इन खंडित मूर्तियों की पूजा करके अपने आप को घन्य पाते हैं। यमुना नदी के किनारे बसा गांव आसई देश दुनिया का एक ऐसा गांव माना जा सकता है, जहां के वाशिंदे खंडित मूर्तियों की पूजा में विश्वास करते हैं। इस गांव के लोग किसी मंदिर में पूजा अर्चना नहीं करते हैं बल्कि हर घर में उनके आराध्य की मूर्तियां पाई जातीं हैं। घरों में प्रतिस्थापित यह मूर्तियां साधारण नहीं हैं। अपितु दसवीं से ग्यारहवीं सदी के मध्य की बताई जातीं हैं। दुर्लभ पत्थरों से बनी यह मूर्तियां देश के पुराने इतिहास एवं सभ्यता की पहचान कराती हैं।
उपजिलाधिकारी महेंद्र सिंह ने बताया कि उनको भी खेत से इतनी बड़ी तादात में खंडित मूर्तियों के निकलने की खबर मिली है। इसको लेकर जिलाधिकारी से चर्चा करके पुरातत्व विभाग को अवगत कराया जा रहा है। ताकि इस बावत कोई अध्ययन किया जा सके, फिलहाल एसडीएम चकरनगर को इन मूर्तियों को संकलित करने की जिम्मेदारी दी गयी है।अब यह पता लगाने की कोशिश शुरू हो गयी है कि आखिर इन मूर्तियों का इतिहास क्या है।
जैन दर्शन के मुताबिक मुख्यालय से करीब पंद्रह किमी दूर स्थित आसई क्षेत्र में जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने लगभग दो हजार साल से अधिक समय पहले दीक्षा ग्रहण करने के बाद इसी स्थान पर बर्षात का चातुर्मास व्यतीत किया था। तभी से यह स्थान जैन धर्मावलंबियों के लिए श्रद्धा का केंद्र बन गया था। इसके अलावा तकरीबन दसवीं शताब्दी में राजा जयचंद्र ने आसई को अपने कन्नौज राज्य की उपनगरी के रूप में विकसित किया था और जैन दर्शन से प्रभावित राजा जयचंद्र ने अपने शासन के दौरान जैन धर्म के तमाम तीर्थंकरों की प्रतिमाओं को दुर्लभ बलुआ पत्थर से निर्मित कराई।