चैन्नई-बैंगलोर हाईवे पर आम्बुर स्टेशन से 8 किलोमीटर दूर 1 छोटा सा गांव है तेनमपट्ट
वहाँ लगभग 60 तमिल परिवार रहते हैं । चारों तरफ केवल नारियल के पेड़ हैं , ऐसे सुन्दर और शांत प्राकृतिक स्थान पर स्थानीय लोगों की जानकारी के आधार पर कृष्ण वर्ण की 1 पार्श्वनाथ भगवान की जिन प्रतिमा कम से कम पिछले 65 वर्षों से एक पीपल के पेड़ के नीचे रखी थी।
साथ में एक नाग की प्रतिमा भी वहां रखी थी। परंतु यह प्रतिमा यहाँ कब से है और कैसे आई इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है ।
गाँव वाले लोगों को यह पता नहीं था कि यह प्रतिमा किसकी है पर स्वाभाविक श्रद्धा से वो उसपर पानी डालते थे और फूल चढ़ाते थे और उनकी यह मान्यता थी कि इस प्रतिमा के कारण उनके गांव में समृद्धि है ।
आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व निकटवर्ती तिरपात्तूर जैन संघ को इस बात की सुचना मिलने पर वो वहां पहुंचे और प्रतिमा देने का निवेदन किया परंतु स्थानीय निवासियों का लगाव प्रतिमा से होने के कारण वो प्रतिमा देने को तैयार नहीं थे ।
उनका आग्रह था कि मंदिर वहीं पर ही बनाया जाये परंतु सभी परिवार मांसाहारी थे इसलिए वहाँ मंदिर बनाने पर अशुद्धि और आशातना की सम्भावना थी , इसलिए वापस लौटना पड़ा ।
कालान्तर में इसी साल पौष वदी दशम को प्रभु के जन्म कल्याणक के दिन ही तिरपात्तूर में एक श्राविका को स्वप्न में उस पेड़ के नीचे रखी जिन प्रतिमा और नाग की प्रतिमा के दर्शन हुए और संजोग से उसी दिन उस गांव से एक व्यक्ति उस प्रतिमा का फ़ोटो लेकर यहाँ आया तब संघ के अग्रणी श्रावक फिर से वहाँ गए और इस बार उनके प्रयास से वहाँ के 13 परिवारों ने आजीवन मांसाहार त्याग का नियम लिया और मंदिर में दर्शन सेवा पूजा रखरखाव के लिए तैयार हुए ।
तत्पश्चात तिरपात्तूर और आम्बुर के 4 भामाशाह जैन परिवारों ने अतिशीघ्र वहां भूखंड खरीदकर 40 दिन में जिन मंदिर का निर्माण करवाया और 11-12 मार्च 2015 को
पूज्य उपाध्याय प्रवर मणिप्रभसागर जी म. सा. के शिष्य पूज्य मनितप्रभ सागर जी म.सा. आदि ठाणा 3 , साध्वी श्री मयुरप्रिया श्री जी आदि ठाणा 3 और यतिवर्य श्री वसंत गुरु जी की निश्रा में भव्य अंजन शलाका प्रतिष्ठा महोत्सव वहां सैकड़ों जैन और तमिल लोगों की उपस्थिति में संपन्न हुआ ।
विशेष बात ये रही कि तमिल मूल की 4 लड़कियों ने 30000 नवकार मंत्र का 1 महीने तक जाप किया और वरघोड़े के दिन 2 लड़कियों ने चैत्यवन्दन भी किया ।गाँव के लोगों को दर्शन – पूजा की शुद्धता और विधि के बारे में सिखाया गया है। अभी प्रति सप्ताह वहां तिरपात्तुर संघ द्वारा स्नात्र पूजा भी कराई जायेगी तथा धार्मिक कक्षा ली जायेगी। मंदिर में पूजा करने वालों को रोज़ प्रभावना भी दी जायेगी ।
पार्श्वनाथ दादा की यह अत्यंत मनमोहक प्रतिमा लगभग 50 इंच की है परंतु इसका वजन लगभग 1500 किलो से भी अधिक है इसलिए लगभग 10-15 लोगो की 3 घंटे की कड़ी मेहनत के पश्चात् प्रतिमा जी को मंदिर के बाहर उसके पूर्व स्थान से हटाकर गम्भारे के अंदर ले जाने में सफलता प्राप्त हुई ।
टेस्टिंग से यह भी पता चला है कि प्रतिमा जी लगभग 2000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है परंतु मजबूत और भारी पत्थर से निर्मित होने के कारण आज भी पूर्ण सुरक्षित है और अत्यंत मनमोहक प्रतीत होती है ।