Michhami Dukkadam Thoughts & Sms
मित्रो, अनेक अवसरों पर स्वार्थ या प्रमाद के वश होकर जानकर या अनजान में विचारो का संतुलन बिगड़ जाता है, वाणी में कटुता आ जाती है , आचार से क्लेश पंहुचता है |
मेरे व्यवहार से जाने अनजाने आपको किसी प्रकार का आघात पंहुचा हो तो सांवत्सरिक क्षमा याचना के महा पर्व पर आप से अंत: कारन से क्षमा चाहता हूँ |
(क्षमा वीरस्य भूषणं)
जैन संस्कृति के महान पर्युषण महापर्व एवं संवत्सरी के अवसर पर हार्दिक बधाई ,..
भूल होना सहज भाव है ,और भूल का प्रायश्चित करना मानवीय गुण होता है ,…
इस प्रथ्वी पर प्रत्येक प्राणी मात्र चाहे वह किसी भी वर्ग जाति या समुदाय का हो,
अपने जीवन के कार्यों मैं जाने -अनजाने मैं भूल होना स्वाभाविक है ,|
अत: आत्म्शुध्दी के इस महापर्व पर हम अपने मन, वचन, काया ,से की गयी समस्त
भूलों के लिए आपसे बारम्बार क्षमा याचना करते है ,..कृपा कर क्षमा प्रदान करे ,..
गलतियां लाख हुई होगी हम से उनहेँ माफ कर देना :जाने अनजाने ,चाहे अनचाहे हुई भूलोँ की गांठ को आज आप सब साफ कर देना ! विगत दिनों में मेरे किसी व्यवहार से आपका दिल दुखा हो तो उसके लिए मैं हाथ जोड़कर आपसे
मन वचन काया से क्षमा माँगता हू मिच्छामि दुक्कडम.!
मे और मेरा परिवार आपके तप-जप कि सुख-साता पूछते हैं एवं आपको हमने अपनी मन वचन एवं काया से 12 महीने मे बोलते चालते आपका दिल दुखाया हो तो हाथ जोड़ कर आप से खमत् खामना चाहते हैं
संवत्सरी महापर्व की हार्दिक बधाईया — विगत बर्ष मे मुझ से कुछ ऐसा कहा गया या सुना गया हो जिस से आप जी के कोमल ह्रदय को चोट लगी हो तो मैं मन वचन काया से क्षमा याचना करता हू ।।।
दस मन ना, दस वचन ना ,बार काया ना,
ए बत्रिश दोशोमा जे कोई दोष लाग्यो होए ते सवी हु मन वचन कायाये करी
तस्स मिच्छामी दुक्कडम