Maun Ekadashi Gananu(Hindi)
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‘The Tirthankar’s preaching is necessary to remove’
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Speech is siver but to keep silence is golden. The work done by silence is not done by speaking.
It is celebrated on the 11th day of the month of Magshar (Magshar Sud.11). It is a very important day because 150 Kalyanakas of the Tirthankars of past, present and future have happened on this day. In past a gentlemen named Suvrat Sheth had worshipped. On this day the following rites are done :
– A fast is observed in Paushadha with keeping silence
– Kayotsarga of 12 Logassa
– 12 Khamasanas
– 12 Swastiks and 20 Navakarvalis of the Jap Pad’Aum Rhim Shrim Mallinath Sarvagnaya Namh’. The Birth, Diksha and Omniscience Kalyanakas of Shri Mallinath, the Diksha Kalyanaka of Shri Aranath and the Omniscience Kalyanaka of Shri Naminath had happened, So total five Kalyanakas are celebrated on this day.
मौन एकादशी का पर्व है।यथाशक्ति आराधना, तपस्या करे।
मागसर शूक्ला एकादशी के दीन जन्म हूआ, मगसर शूक्ला एकादशी के दीन दीक्षा ली और उसी दीन केवल ज्ञान हूआ | श्री अरनाथ भगवान् का दीक्षा (तप) कल्याण और
श्री नमिनाथ भगवान् का केवलज्ञान दिवस !!
धन्य हो !! १ नहीं २ नहीं — पांच कल्याणक हुए…इसलीए “मौन एकादशी” जैन धर्म मे महत्वपूर्ण है
अहा ! कितना पावन दिवस है आज का !!
१ नहीं २ नहीं — पांच कल्याणक हुए आज मौन एकादशी के दिन !
श्री मल्लिनाथ भगवान् का जन्म, दीक्षा (तप) और केवल ज्ञान कल्याण
श्री अरनाथ भगवान् का दीक्षा (तप) कल्याण और
श्री नमिनाथ भगवान् का केवलज्ञान दिवस !!
धन्य हो !!
मौन एकादशी विशेष….मौन रखना ,,,,,,,,मौन….
कल मौन एकादशी है।जैन दर्शन में एक बहुत शुभ व मंगलकारी पर्व जिसे मौन एकादशी( मौन ग्यारस ) कहते हैं।यह पर्व मगसर माह के ग्यारहवें दिन अर्थात मगसर सुदी ग्यारस को मनाया जाता है।इस दिन एकादशी व्रत पर मौन रहने का महत्व है। वर्ष में एक बार आने वाली मौन एकादशी का व्रत पापों से मुक्ति दिलाता है। कर्म क्षय करने का यह मुख्य दिन है। इस दिन जैन उपाश्रय, स्थानकों आदि पर विशेष धर्म आराधनाएं होती हैं। इस दिन जो भी धार्मिक क्रिया करेंगे उसका १५० गुणा फल प्राप्त होगा।
और इस दिन किये गए पाप का फल भी १५० गुणा होगा।
आज के दिन अर्थात मौन एकादशी को की जाने वाली धर्म आराधनाएं –
1) मौन धारण के साथ पौषध व्रत
2) 12 लोगस्स का कायोत्सर्ग
3) 12 खमासणा
4) 12 स्वास्तिक
5) इस जप पद की 20 नवकारवाली
” ॐ ह्रीं श्रीं मल्लिनाथ सर्वज्ञनाय नमः”
*****मौन एकादशी से जुडी विशेष जानकारी*****
श्री नेमिनाथ भगवान और कृष्णवासुदेव
एक समय श्री नेमिनाथ भगवान द्वारिका नगरी पधारे।जब कृष्णवासुदेव ने प्रभु के आगमन के समाचार सुने तो वे उनके दर्शनार्थ हेतु उनके समवसरण में गए।उनकी धर्म देशना सुनने के बाद कृष्ण ने उन्हें वंदन नमन किया व उनसे प्रश्न किया, ” हे प्रभु ! राजा होने के नाते राज्य की बहुत सारे कर्तव्यों के चलते मैं किस प्रकार अपनी धार्मिक क्रियायों को आगे तक करता रहूँ ? कृपया मुझे पुरे वर्ष में कोई एक ऐसा दिन बताएं जब कोई कम प्रत्याख्यान व्रतादि के बाद भी अधिकतम फल को प्राप्त कर सके ?”
यह सुनकर श्री नेमिनाथ बोले, ” हे कृष्ण, यदि तुम्हारी इस प्रकार की इच्छा है तो तुम मगसर माह के ग्यारहवें दिन ( एकादशी अर्थात मगसर सुदी ग्यारस ) को इस दिन से जुडी सभी धार्मिक क्रियाओं को पूर्ण करो।” प्रभु ने इस दिन की विशेषतायें भी समझाईं।
मौन एकादशी की विशेषतायें
एकादशी के इस दिन
1) श्री अरनाथ भगवान ( 18वें तीर्थंकर ) ने सांसारिक जीवन त्यागकर दीक्षा अंगीकार कर साधूत्व अपनाया।
2) श्री मल्लिनाथ भगवान ( 19वें तीर्थंकर ) का जन्म हुआ , संसार त्यागकर दीक्षा अंगीकार की व केवल ज्ञान प्राप्त किया।
3) श्री नेमिनाथ भगवान ( 22 वें तीर्थंकर ) ने केवल ज्ञान प्राप्त किया।
इस प्रकार तीन तीर्थंकरों के 5 कल्याणक इस दिन मनाये जाते हैं।
भरतक्षेत्र व ऐरावत क्षेत्र में भी चौबीसीयां होती हैं, वहां भी 5 कल्याणक होते हैं।इस तरह 5 भरतक्षेत्र में (5 × 5 = 25 ) कल्याणक व 5 ऐरावत क्षेत्र में ( 5 × 5 = 25 ) कल्याणक होते हैं। अर्थात भूतकाल, वर्तमान काल व भविष्य काल की चौबीसियों से सभी क्षेत्रों में 50 कल्याणक से कुल 150 कल्याणक मिलते हैं।
यह सुनकर कृष्ण ने जिज्ञासावश पूछा, ” भगवन, कृपया मुझे बताइये के भूतकाल में किसने इस दिन की पूजा
की व इसके फलों को प्राप्त किया ? ”
तब प्रभु नेमिनाथ ने सुव्रत सेठ का उदाहरण दिया जिसने इस दिन पूरी परायणता से, भक्ति से धार्मिक क्रियाओं का अनुसरण करके प्रतिज्ञा पूर्ण की और मोक्ष प्राप्त किया।
सुव्रत सेठ की कथा
विजयपाटन नामक नगर के घातकीखंड जिले में सुर नामक व्यापारी रहता था। उस राज्य का राजा सुर का बहुत आदर करता था व उसे बहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति समझता था।एक रात्रि, शांतिपूर्वक सोते हुए वह मध्यरात्रि के प्रारंभकाल में जागा, तभी उस पर एक अलौकिक प्रकाश पड़ा व उसे दृष्टान्त हुआ की वह अपने पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों की वजह से इस जन्म में प्रसन्नतापूर्वक संपन्नता से रह रहा है। इसलिए अगले जन्म में सम्पन्नता से जीने के लिए उसे इस जन्म में कुछ फलदायक करना पड़ेगा क्योंकि इसके बिना सब निरर्थक है। सूर्योदय के बाद शीघ्र ही वह अपने गुरु से मिलने गया और उनके उपदेश को सुनकर वह बहुत प्रभावित हुआ व गुरु से पूछा, ” हे गुरुदेव ! जिस तरह का कार्य मैं करता हूँ, यह संभव नहीं की मैं नित्य पूजा पाठ व अन्य धार्मिक क्रियाएँ कर सकूँ।यदि आप कृपा करके मुझे कोई एक दिन बताएँ जिस दिन मैं अपनी सब धार्मिक क्रियाएँ कर सकूँ और उनके अधिकतम फल( पुण्य ) प्राप्त कर सकूँ ?”
तब गुरुदेव बोले, ” मगसर माह के ग्यारहवें दिन अर्थात मगसर सुदी ग्यारस को तुम 11 वर्ष और 11 महीने तक लगातार मौन रखकर पौषध रुप में व्रत करो।यह प्रण पूर्ण करने के बाद तुम हर्षोल्लास से मना सकते हो।” यह सुनकर उसने अपने परिवार के सदस्यों के साथ कथित काल तक पूरी भक्ति से एकादशी का व्रत किया। तपस्या पूर्ण होने के 15 दिन बाद उसकी मृत्यु हो गयी और वह 11वें स्वर्ग( देवलोक ) में गया।वहाँ 21 सागरोपम की आयु पूर्ण करने के पश्चात उसने भरतक्षेत्र के सौरीपुर नामक नगर के सेठ समृद्धिदत के पुत्र के रूप में जन्म लिया।उसके पिता द्वारा उसे सुव्रत नाम मिला। जब उसे ज्ञान हुआ की एकादशी के दिन की पूजा करने के कारण उसे यह सुन्दर जीवन मिला है व वह 11वें देवलोक में गया था, उसने अपनी 11 पत्नियों के साथ
एकादशी का प्रण लिया।उसकी सब पत्नियों ने केवलज्ञान प्राप्त किया व मोक्षगमन किया।कुछ समय बाद ही राजा सुव्रत ने भी तपस्या करते हुए केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। देवलोक के सभी देवताओं ने उनका यह मुक्ति दिवस मनाया।तब फिर उन्होंने कमल पर विराजित होकर अपने शिष्यों को उपदेश दिए।कुछ वर्षों बाद उन्होंने भी मोक्ष प्राप्त कर लिया।
इस तरह, भगवान नेमिनाथ ने कृष्णवासुदेव को यह कथा बताई और उसके बाद कृष्णवासुदेव व उनके समस्त राज्य ने इस सम्यक्त्व राह को अनुगमन करने का निर्णय किया।
मगसिर शुदी ११ यानि मौन एकादशी है।
इस दिन भूत, वर्तमान और भविष्य के मिला कर तीर्थंकर भगवंतो के कुल १५० कल्याणक हुए है। इस दिन धर्म आराधना और तपस्या करने पर उसका १५० गुणा फल मिलता है।
अतः ये अवसर हाथ से न गवाएं, अधिक से अधिक धर्म आराधना और तपस्या कर पुन्योपार्जन करें।