श्री नवपद ओली का चतुर्थ दिवस, उपाध्याय भगवन् की आराधना… . श्री नवपद शाश्वत ओली आराधना… चतुर्थ दिवस : उपाध्याय भ° की आराधना… उपाध्याय भगवंत की आराधना को प्राणवंती बनाने के लिए उनका संक्षिप्त परिचय… उपाध्याय भगवंत 25 गुण के धारक : ग्यारह अंग चौदह पूर्व के, बारह उपांग, चरणसित्तरी, करणसित्तरी । जिनशासन में आचार्य भगवंत अर्थदेशक है और उपाध्याय सूत्र के दाता है, शिष्य परिवार को सूत्र का दान देने के अधिकारी उपाध्याय है। शास्त्र में कहा है..सुख पामे चेला देखंता जस नेण अर्थात उपाध्याय जब वाचना देने आते है तब उनके मुखकमल की निर्मलता को देखकर शिष्य परिवार आनंदित होता है, वे मुर्ख शिष्य को भी पंडित कर देते है। वे अध्ययन अध्यापन में निमग्न रहते है। जिनवाणीसार : राग-द्वेष रहित होकर वीतराग भाव से जो आराधना की जाती है, वह अवश्य ही पुनः जिनशासन, स्वर्ग, मोक्ष प्रदान करते हुए आत्मा को परमात्मा भी बना देती है।
उपाध्याय पद की आराधना
खमासमणा नो दुहो
तप सजझाये रत सदा,
द्वादश अंगना ध्याता रे ।
उपाध्याय ते आतमा,
जग बंधव जग भ्राता रे ।।
वीर जिनेश्र्वर उपदिशे,
तमे सांभळजो चित लाई रे, ।
आतम ध्याने आतमा,
ऋध्धि मले सवी आई रे ।।
वणॅ : लीलो
जाप : ऊॅ ह्री नमो उवज्झायाणं
आ पदनी वीश नवकार
वाली गीने.
प्रदक्षिणा : २५
साथीया : २५
खमासमणा : २५
काउस्सग्ग : २५