रात को सोते समय की विधि | Raat ko Sote Samay ki Vidhi
सात नवकार गिनकर नीचे लिखी हुई प्रार्थना करना ।
श्री अरिहंत परमात्मा का शरण हो !
सिद्ध परमात्मा का शरण हो !
श्री साधु भगवंतों का शरण हो !
श्री केवली प्ररुपित धर्म का शरण हो !
एगो में सासओ अप्पा नाण-दंसण-संजुओ
सेसा में बाहिरा भावा, सव्वे संजोग लक्खणा ॥१॥
एक मेरी आत्मा शाश्वत है । ज्ञान-दर्शन मेरे गुण हैं । उसके
अलावा सभी पौद्गलिक संयोग, सम्बंध, धन, स्त्री, कुटुंब आदि आत्मा
से अलग है । साथ में आए नहीं, आयेंगे नहीं, साथ में केवल एक
श्रीजिनेश्वरदेव का धर्म ही आयेगा ।
आहार शरीर ने उपधि, पच्चक्खाण पाप अढार
मरण आवे तो वोसिरे, जी तो आगार ॥२॥
आज तक मेरे जीव ने जो कोई पुद्गल ग्रहण करके रखे हो,
उसको त्रिविधे त्रिविधे वोसिराता हूँ, वोसिराता हूँ, वोसिराता हूँ।
हे जगद्वत्सल ! भवचक्र में आज पर्यंत मेरे जीव ने आपश्री की
आज्ञा अनुसार जो कोई साधना की हो, कराई हो, करने का अनुमोदन
किया हो, उसी में अनुमोदन करता हूं।
आपश्री की आज्ञानुसार जहां-जहां आराधना हुई हो, होती हो,
होने वाली हो उसको मैं त्रिविधि अनुमोदन
करता हूँ, अनुमोदन करता
हूँ, अनुमोदन करता हूँ।
मैं सभी जीवों को खमाता हु। सभी जीव मुझको खमायें ।
सिद्ध परमात्मा की साक्षी से मैं आलोचना करता हूँ । मेरा किसी के साथ
वैर विरोध नहीं है । चौदह राजलोक में परिभ्रमण करते सभी जीव
कर्मवश है। उन सभी को मैं खमाता हुहूं, वो कभी मुझको खमावे, जो
जो मन से, वचन से, काया से, पाप किया हो दुष्कृत मिथ्या हो
(नाश हो) ।