पुस्तक लेखन कब से प्रारंभ हुआ
श्री बुद्धिसागर सूरिजी ने अपनी तत्त्वज्ञान दीपिका पुस्तक के पृ. १३ पर श्री महावीर परमात्मा के समय में भी पुस्तकें लिखी जाती थी, इस विषय मे अच्छा प्रकाश डाला है। हम उनके हि शब्दों में देखें।
श्री हरिभद्रसूरिजी वीर संवत् एक हजारनी सालमां थया छे तेओए महानिशीथ सूत्रनो उद्धार करयो। एम तेओ जणावे छे। तेओ लखे छे महानिशीथ पुस्तकनो घणोखरो भाग उद्धेइ ( दीमक) खा गई, तेथी जेटलुं मल्युं तेटलुं भेगुं करी आनो उद्धार करियो छे। श्री हरिभद्रसूरिजी विक्रम संवत् ४२५ लगभगमां विद्यमान हता ते वखतमां ताडपत्र ऊपर लखवानुं प्रायः काम चालतुं हतुं तेथी ते सूत्र ताड़पत्र पर लखायनो काल विचारीये तो श्री हरिभद्रसूरिजी पहेलां लगभग हजार वर्ष थवा जोइए ताड़पत्रनी प्रति ( प्रत) हजार वर्ष थया विना घणी जूनो थई सके नहीं ते उपरथी पण अनुमान पुरावो मले छे के श्री विर प्रभुना समय लगभगमां पुस्तकों लेखवानी प्रक्रिया शुरू थई गयी होवी जोइए। ( महानिशीथ छेद सूत्र लिखा हुआ था तो उस समय भी आगम लिखे जाते थे क्या?) तेमनां लगभगमां श्री मल्लवादि थया छे। तेओ ए जूना भंडार मांथी द्वादसार नयचक्र नामनुं पुस्तक वांच्युं इत्यादि वात आवे छे। अने एक भंडार साध्वीना तबामां हतो। इत्यादि वृतांत पण पहेलानां वखतमां जैन पुस्तकों लखतां हता एम पुरवार करी आपे छे। जैनोना शाकटायन नामना मुनि ए शाकटायन नामनुं व्याकरण बनाव्युं छे। अने ते व्याकरण बहु प्राचीन गणाय छे। तेनो अभ्यास अन्य धर्म वालाओ पण करता हता अने ते लखाये विना बनी शके नहीं। यास्काचार्ये वेद ऊपर निरूक्ति रचतां शाकटायन व्याकरणनुं प्रमाण आप्युं छे। आ ऊपरथी सिद्ध थाय छे के जैनोनां ग्रन्थों श्री महावीर स्वामी थी पहेलां पण लखवानो रिवाज हतो। एक वळी पुरावो श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरिजीना चरित्रथी आपवामां आवे छे। तेओ विक्रम राजाना समयमां थया हता। श्री विर प्रभु पश्चात् ४७० वर्ष लगभग थया हता। तेओ एक वखत चित्रकूट ( हाल चित्तौड़) मां आव्या हता। तेमने एक जिनमंदिरनो थांभलो जोयो। तेमने घणी औषधियों मेलवी थांभलाने लेपकर्यो, ते तर्तज ते कमलना डोडानी पेरे उघडी़ गयो। तेमां चमत्कारिक पुस्तक जोवामां आव्युं। तेमांथी एक पानुं आकर्षी वांच्युं। तेमथी त्रण विधाओ मली। बीजुं पानुं वांचतां देवताए अकटाव्या अने कह्यूं के बस। तेमनां देखता थांभलो बंध थई गयो आ ऊपरथी पण ऐम सिद्ध थाय छे के चित्रकूटना मंदिरना थांभलामां ते वखत पूर्वे आठसो हजार वर्ष लगभगनुं पुस्तक होय एम अनुमान थाय छे। ते पुस्तक पांच सो वर्ष पूर्व लखायुं एम अनुमान करीये तो श्री विर प्रभु नो समय जणाय छे। ते मंदिर श्री पार्श्वनाथ भगवाननुं होय अेम संभव छे। आ ऊपरथी पण एम सिद्ध थाय छे के जैन धर्मना पुस्तकों घणा प्राचीन समयथी लखता आव्या छे।