२८०० वर्ष प्राचीन जैन मंदिर का प्रतिष्ठा महोत्सव
शरू….महोत्सव में जर्मनी से ऐसा टेंट यहां लगाया जा रहा है जिसमें करीब 50000 से अधिक श्रद्धालू बैठ सकेंगे
देवधरा सिरोही में संतों और श्रद्धालुओं का जमावड़ा, होने जा रही है 13 साल से निर्माणाधीन जैन मंदिर की प्रतिष्ठा:-
सिरोही जिले की देवधरा अर्बुदांचल के धार्मिक इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जुड़ने जा रहा है। सिरोही जिले के जीरावल जैन तीर्थ में पिछले 13 साल से बन रहे मंदिर की प्रतिष्ठा होने जा रही है। आयोजन की भव्यता और मंदिर की वैभवता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रतिष्ठा महोत्सव में देशभर से हजारों संत और लाखों श्रद्धालु शामिल होंगे। जिसके लिए गत एक साल में एक रथ ने देशभर में 15 हजार कि.मी. की यात्रा कर शहर शहर गांव-गांव में आमंत्रण दिया गया है।
इस महोत्सव में जर्मनी से ऐसा टेंट यहां लगाया जा रहा है जिसमें करीब 50000 से अधिक श्रद्धालू बैठ सकेंगे। बताया जा रहा है कि देश में पहली बार इस तरह का टेंट लगाया जा रहा है जो कि जर्मनी से आया हैं। महोत्सव 25 जनवरी से शुरू होगा तथा 3 फरवरी तक आयोजित किया जाएगा। यह महोत्सव देश भर के कई जैन मुनि व आचार्यो के सान्ध्यि में सम्पन्न होगा। इस महोत्सव में भंवर दोषी भी आए हुए है जो कि आज मुनि भव्य रत्न के नाम से जाने जाते है। ये करीब 18 माह पूर्व एक बडे बिजनैस मैन के रूप में अपनी छाप रखते थे तथा जिन्होने अपनी अरबों रूपए की सम्पत्ति छोडकर दीक्षा ली थी। आज वे आज भूख प्यास की चिंता किए बिना देश भर में भ्रमण कर रहे है। वे भी इस महोत्सव में यहां आए हुए है।
जीरावला पाश्र्वनाथ का यहां पूरा मंदिर 4.66 लाख स्कवायर फिट में बना है। जिसमें मुख्य मंदिर 36 हजार स्कवायर फिट में बना है। मंदिर को बनाने में करीब एक लाख 50 हजार घन फिट मकराना का सफेद संगमरमर लगाया गया है। बाकी निर्माण कार्य जैसलमेर समेत अन्य महंगे पत्थरों से हुआ है। यहां मंदिर में मुख्य मंदिर पाश्र्वनाथ भगवान का, इसके अलावा अन्य मंदिर भी है। इस मंदिर में 3 मंजिल की भोजनशाला है जिसमें एक साथ हजारों की संख्या में श्रद्धालू प्रसाद ग्रहण कर सकते है। यहां 60 हजार स्कवायर फीट में धर्मशाला बनी हुए है। करीब दो सौ कमरों वाली यहां धर्मशालाएं बनाई गई हैं, जो जैसलमेर के पत्थरों से बनी है।
यह महोत्सव 11 दिन चलेगा। यह प्रतिष्ठा महोत्सव 23 जनवरी से शुरु होगा और 2 फरवरी तक चलेगा। बताया जाता है कि यह मंदिर 2800 वर्ष प्राचीन है। मेरुतुंगसूरिजी महाराज द्वारा रचित श्री जीरावला पार्श्वनाथ स्त्रोत के आधार पर इस तीर्थ में विराजमान मूलनायक श्री जीरावला जैन तीर्थ का निमार्ण 2800 वर्ष पूर्व रद्यपूर नगर के राजा चंद्रयश राजा ने दूध और बालू से किया था। कालांतर में यह प्रतिमा भूमिगत हो गई। इसके बाद निकट के वरमाण गांव के धांधल श्रावक को इस प्रतिमा का स्वप्न आया। जिस पर उन्होंने सिंहोली नदी के समीप देवत्री गुफा से संवत 1109 में इसे प्रकट किया। इसके बाद 1191 में आचार्य अजितदेव सूरिश्वर के हाथों से मूलनायक की प्रतिष्ठा संपन्न हुई। मुगल आक्रमणों में यह मंदिर तहस नहस कर दिया गया। इसके बाद इसकी प्रतिष्ठा पहले भी की गई, लेकिन इतने भव्य स्तर पर मंदिर का निर्माण और जीर्णोद्धार पहली बार हुआ है।
मंदिर के पांच विशाल शिखर हैं। मुख्य शिखर के नीचे मूलनायक श्री जीरावला पार्श्वनाथ दादा विराजेंगे। आसपास के चार शिखरों में मूलनायक शंखेश्वर पार्श्वनाथ, नूतन जीरावला पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और श्री महावीर स्वामी विराजेंगे। इसके अलावा मंदिर में तीन वृहद देव कुलिकाएं, चार कोनों में आठ लघु महाधर प्रासाद बनाए गए हैं। शेष 42 देवकुलिकाओं में 108 पाश्र्वनाथ, 2 देवकुलिकाओं में शुभ सरस्वती और श्री गौतम स्वामी गणधर विराजेंगे। जीरावला पाश्र्वनाथ जैन धर्म में विध्नहर्ता माने जाते हैं। किसी भी शुभ कार्य से पूर्व उनका स्मरण किया जाता है।
मंदिर का निर्माण 13 साल में पूरा हुआ है। इसमें माउंटआबू के देलवाड़ा और रणकपुर जैन मंदिर की नक्काशी, रणकपुर मंदिर और जैसलमेर की हवेलियों की शिल्पकला को शामिल किया गया है। मंदिर और धर्मशाला के अलावा पचीस हजार स्कवायर फिट में श्रावक, श्राविका उपाश्रय, पेढ़ी कार्यालय स्वागत कक्ष और प्रदर्शन हॉल बना है। सवा तीन लाख स्कवायर फिट में संघ आयोजन वाटिका और विशाल 11 महाप्रवेश द्वार बनाए गए हैं|
*।। ॐ ह्रीं श्री जिरावला पार्श्वनाथाय नमः ।।*