आभ पूछे धरणी ध्रुजे,
संग्रामनो आ भेरी,
विसयाशकितनी खडग लईने,
मोह वळ्यो छे घेरी,
कुम-कुम तिलक स्वजनो,
करता मंगल ध्वनिओ गाता,
विजयी भवना आशिष देता,
युद्धे तमने जता…(१)
वैरागी चाल्यो,
उपशम असी ने धारी,
संवेग रंग लाग्यो,
सांभळी गुरुनी वाणी
जंगने खेल्यो,
मोहने देवा ढाळी,
वैरागी चाल्यो,
उपशम असी ने धारी….(२)
हो… आणा ए धम्मोनो रथ,
सारथी प्रभु, तुं थशे असवार,
तुरग रथना बे जाणे
के निश्चय ने व्यवहार,
लक्ष्यने नजरमां राखी,
स्वरूप ने पामीश तुं पलवार,
मेळवीश साम्राज्य अखंड,
पुण्य तारुं प्रचंड,
शास्त्रना उपनयने जाणी,
तोडिश मोह घमंड,
कुम-कुम तिलक स्वजनो,
करता गंगल ध्वनिओ गाता,
विजयी भवना आशिष देता,
युद्धे तमने जता…(३)
वैरागी चाल्यो,
उपशम असी ने धारी,
संवेग रंग लाग्यो,
सांभळी गुरुनी वाणी
जंगने खेल्यो,
मोहने देवा ढाळी,
वैरागी चाल्यो,
उपशम असी ने धारी…(४)
भोगाः न भुक्ता वयमेव भुक्ता
स्तपो न तप्तम वयमेव तप्ताः
कालो न यातो वयमेव याताः
तृष्णा न जीर्णाः
वयमेव जीर्णाः (भर्तृहरि) (५)