आगम पुरुष अवतार,
कलिकालमां योगीराज,
प्रेम-भानुथी दीपतां,
जयघोषसूरि महाराज…
सूरिराज.. गच्छराज..
जयघोषसूरि महाराज…
श्रमणोना तारणहार..
जयघोषसूरि महाराज…(१)
जिनदर्शन पामीने,
जे जिनवाणी वरसावे,
भिन्नतानो भेद टाळी,
एकता जे प्रसरावे,
सूज (सूत्र) समजण आगवी,
श्रीसंघने जे देनारा,
पुण्यना साम्राज्यमां पण,
परथी अळगा रहेनारा… सूरिराज…(२)
वैराग्य दीक्षा, हितशिक्षा,
आपीने जे संभाळे,
योगने उपयोग धारे,
मोहने जे हंफावे,
आश्रितोना हृदयमां जे,
स्वामीभावे वसनारा,
तत्त्व आगम पानथी,
गीतार्थने वरनारा… सुरिराज…(३)
सानिध्य अर्पी, पापी दर्पी,
जीवने उगारे छे,
पापने संतापने जे,
कोस दूर भगावे छे,
सहजता, निर्मलता,
निर्लेपतामां, झिलनारा,
आत्मशुद्धि, आत्मपुष्ठि,
साधीने जे खिलनारा… सूरिराज…(४)
संवेग संयम भावनाथी,
मार्गने जे माणे छे,
सद् गुरुना प्रेमनी सुवासमां,
जे म्हाले छे,
आनंद परमानंदना,
आकाशमां विहरनारा,
संघना जयघोषनो,
उद्घोष जगमां करनारा… सूरिराज…(५)